Thursday, February 16, 2012

नए सिरे से लीपापोती

कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग की ओर से विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों को भेजे गए इस निर्देश में कुछ भी नया नहीं है कि वे भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की अनुमति देने में देर न करें। यह निर्देश सिर्फ इसलिए दिया गया है, क्योंकि पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे लोकसेवकों के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति देने का फैसला अधिकतम चार माह में अवश्य कर लिया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला स्पेक्ट्रम घोटाले के लिए जिम्मेदार ए. राजा के खिलाफ कार्रवाई में हुई देरी के संदर्भ में दिया। यह जानना दुखद है कि यह देरी प्रधानमंत्री कार्यालय के स्तर पर हुई। जब शासन के शीर्ष स्तर पर भ्रष्ट लोकसेवकों के खिलाफ कार्रवाई करने के मामले में हीलाहवाली हो सकती है तब अन्य स्तरों पर इससे भी अधिक खराब स्थिति होना स्वाभाविक ही है। इसमें संदेह है कि कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग की ओर से भेजे गए दिशा-निर्देश से कुछ बेहतर हासिल हो सकेगा। यह निर्देश सिर्फ यह दिखाने के लिए भेजा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केंद्रीय सत्ता भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के मामले में गंभीर है। आखिर कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग अभी तक क्या कर रहा था? यह ठीक है कि सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्ट लोकसेवकों के खिलाफ कार्रवाई का फैसला चार माह में करने की समयसीमा अभी हाल में तय की है, लेकिन क्या वह इससे अवगत नहीं कि इसी मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय को न केवल कठघरे में खड़ा होना पड़ा था, बल्कि हलफनामा भी देना पड़ा था। यह भी एक तथ्य है कि भ्रष्ट लोकसेवकों के खिलाफ कार्रवाई का फैसला करने की अवधि बहुत पहले तय कर दी गई थी। विनीत नारायण बनाम भारत सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया था कि भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई का फैसला तीन माह में कर लिया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की इस व्यवस्था से कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के साथ-साथ पूरी केंद्रीय सत्ता भी अवगत थी और केंद्रीय सतर्कता आयोग भी। सच तो यह है कि केंद्रीय सतर्कता आयोग ऐसे अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की अनुमति न मिलने का मुद्दा बार-बार उठाता रहा, लेकिन केंद्र सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा। कई मामलों में तो केंद्रीय जांच ब्यूरो ने भी इस पर लाचारी प्रकट की थी कि उसे भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिरे लोकसेवकों के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं दी जा रही है। केंद्र सरकार को इससे अच्छी तरह अवगत होना चाहिए कि भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के बजाय लीपापोती करने की उसकी प्रवृत्ति के चलते ऐसे अधिकारियों की सूची लंबी होती चली जा रही है। भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति न देने के मामले में आश्चर्यजनक रूप से सभी केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों की स्थिति एक जैसी ही है। केंद्र सरकार को यह अहसास होना ही चाहिए कि जब तक भ्रष्ट अधिकारियों को संरक्षण प्रदान करने की यह प्रवृत्ति समाप्त नहीं होती तब तक घपले-घोटालों पर अंकुश लगाने की उसकी प्रतिबद्धता पर प्रश्नचिह्न लगता ही रहेगा।
साभार :- दैनिक जागरण

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