Thursday, February 16, 2012

चुनाव आयोग को चुनौती

बाटला कांड का जिक्र करके कथित तौर पर सोनिया गांधी के आंसू निकालने वाले केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने चुनाव आयोग को चुनौती देते हुए जिस तरह पिछड़े मुसलमानों का हक दिलाने का दम भरा उससे यह और स्पष्ट हो जाता है कि कांग्रेस मुस्लिम समुदाय को बरगलाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है। नि:संदेह उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की प्रतिष्ठा दांव पर है और विधानसभा चुनाव उसके लिए जीवन-मरण का प्रश्न बन गए हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वह एक समुदाय विशेष का तुष्टीकरण करने के लिए चुनाव आयोग को भी चुनौती देने पर आमादा हो जाए। सलमान खुर्शीद जिस तरह यह साबित करना चाहते हैं कि चुनाव आयोग पिछड़े मुसलमानों को उनका हक दिलाने में बाधक बन रहा है उससे यह स्पष्ट है कि वह मुस्लिम समुदाय की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश कर रहे हैं। इसी कोशिश के चलते उन्होंने आजमगढ़ में अपनी सभा में जुटे लोगों को यह यकीन दिलाने की कोशिश की थी कि बाटला मुठभेड़ फर्जी थी। हालांकि इसके पहले कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह भी बाटला मुठभेड़ को फर्जी साबित करने के लिए जमीन-आसमान एक कर चुके हैं और इस क्रम में गृह मंत्री के साथ-साथ प्रधानमंत्री पर भी निशाना साध चुके हैं, लेकिन सलमान खुर्शीद का उनके रास्ते पर चलना इसलिए आपत्तिजनक है, क्योंकि वह केंद्रीय मंत्री भी हैं। वह केवल अल्पसंख्यक मामलों के ही मंत्री नहीं, बल्कि विधि मंत्री भी हैं। क्या इससे अधिक अनुचित और अस्वाभाविक और कुछ हो सकता है कि मुठभेड़ के किसी मामले में देश का कानून मंत्री गृह मंत्री को गलत साबित करने की कोशिश करे? चुनाव प्रचार के दौरान बाटला कांड की जानबूझकर गलत तरीके से व्याख्या करना और पिछड़े मुस्लिम तबके के हित की बात करना राजनीतिक अवसरवादिता का भी एक उदाहरण है। यदि कांग्रेस और उसके नेतृत्व वाली केंद्रीय सत्ता को बाटला कांड फर्जी नजर आता है तो फिर उसकी जांच कराने से किसने रोक रखा है? यही सवाल पिछड़े मुसलमानों को उनके अधिकार दिलाने के संदर्भ में भी लागू होता है। क्या कांग्रेस के पास इस सवाल का कोई जवाब है कि पांच राज्यों और विशेष रूप से उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले उसे पिछड़े मुसलमानों की याद क्यों नहीं आई? यदि कांग्रेस ने 2009 के अपने घोषणापत्र में पिछड़े मुसलमानों के कल्याण का वायदा किया था तो अभी तक वह हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठी रही? कांग्रेस के इस रवैये को देखते हुए मुस्लिम समुदाय को यह अहसास हो जाना चाहिए कि उसके वोट हासिल करने के लिए उसके साथ सुनियोजित तरीके से फरेब किया जा रहा है। उसे न केवल गुमराह किया जा रहा है, बल्कि उसका भावनात्मक शोषण करने की भी कोशिश हो रही है। यह कोशिश कांग्रेस के साथ-साथ अन्य राजनीतिक दल भी कर रहे हैं। चुनाव के दौरान मुसलमानों को बरगलाने का यह सिलसिला तब तक समाप्त नहीं होने वाला जब तक यह समुदाय इस या उस दल को थोक रूप में वोट देने की प्रवृत्ति का परित्याग नहीं करता। यदि मुस्लिम समुदाय अपना हित चाहता है तो उसे खुद को गुमराह करने वाले दलों से सचेत होना होगा।
साभार :- दैनिक जागरण

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