Thursday, February 16, 2012

सात्विकता

मानव मन की नकारात्मक वृत्तियां सदैव उसे घेरकर पतन की ओर धकेलती हैं। वह अपने को अशक्त एवं असहाय अनुभव करने लगता है। ये नकारात्मक वृत्तियां हैं-राग-द्वेष, भय, क्रोध, संशय। इनके उपस्थित रहने से मनुष्य निश्चयहीनता की स्थिति को प्राप्त होता है। वह समझ नहीं पाता कि क्या करूं। इस नकारात्मकता के घेराव से मुक्ति पाने के लिए अपने आप में प्रतिरोधी ऊर्जा का संचार परम आवश्यक है। अपने अंदर आत्मविश्वास जागृत करना ही इस नकारात्मकता को दूर करने का प्रथम सोपान है। आत्मविश्वास, धन एवं अन्य संपन्नता का स्थायित्व एवं सदुपयोग हेतु ज्ञान एवं विवेक अति आवश्यक है। इन्हीं सबको सात्विकता कहते हैं मनुष्य में यही सात्विक भाव यदि है तो नकारात्मक विचार पास नहीं फटकते हैं। शास्त्रों में वर्णित असुर मधुकैटभ, शुंभ-निशुंभ व महिषासुर नकारात्मक वृत्रियों के प्रतीक हैं। मां के तीन स्वरूप दुर्गा, लक्ष्मी एवं सरस्वती इन्हीं मानव दुष्प्रवृत्तियों की विनाशक शक्ति एवं सुख समृद्धि की दाता हैं। इन तीनों देवियों की आराधना का अभिप्राय है कि इनके द्वारा स्थापित किए जाने वाले सभी गुण उस व्यक्ति में उपस्थित हैं। इन आसुरी नकारात्मक वृत्तियों को जो मनुष्य अपने आचरण से बाहर रखता है वह अपने भीतर सत्य, शांति, संतोष एवं सुख की अनुभूति करता है। कभी ये नकारात्मक शक्तियां अनुवांशिक भी होती हैं जो हमें वंशानुगत प्राप्त होती हैं। हमारा व्यवहार हमारे नियंत्रण में नहीं रह पाता। मानव जीवन तमस, राजस एवं सात्विक में से किसी एक के विकल्प को अपनाने के आधार पर बढ़ता है। अपनी चेतना शक्ति के आधार पर मनुष्य तमस और राजस से निकलकर सात्विक मार्ग अपना ले तो उसका जीवन स्वर्ग बन जाता है। आज के भौतिक जीवन में तनाव का रोग जो बढ़ता ही जा रहा है। परेशान व्यक्ति चिकित्सक की शरण में जाता है और उसके शरीर को अन्य बीमारियां घेर लेती हैं। इस तनाव को दूर भगाने के लिए सात्विकता का व्यवहार ही राम-बाण औषधि है। सात्विकता ही मनुष्य की जीवनी शक्ति है।
डॉ. कन्हैयालाल पांडेय
साभार :- दैनिक जागरण

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