Sunday, February 5, 2012

महंगे पड़ते सस्ते हथकंडे--चुनावों में सफलता हासिल करने के लिए अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की हदें पार होती देख रहे हैं राजीव सचान

यह देखना जितना निराशाजनक है उतना ही दुर्भाग्यपूर्ण भी कि केंद्र सरकार और उसका नेतृत्व कर रही कांग्रेस उत्तर प्रदेश में चुनाव जीतने के लिए किस तरह के हथकंडों का सहारा ले रही है? मुस्लिम समुदाय के तुष्टीकरण के लिए जो काम प्रधानमंत्री रहते समय राजीव गांधी ने किया वही काम भावी प्रधानमंत्री माने जा रहे राहुल गांधी कर रहे हैं। राजीव गांधी ने शाहबानो के गुजारा भत्ता मामले में अदालत के फैसले को दरकिनार करने के लिए संविधान संशोधन किया तो उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी की उम्मीदों को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार ने संविधान में धर्म आधारित आरक्षण का निषेध होने के बावजूद ऐसा ही किया। यदि केंद्र सरकार को ऐसा करना ही था और सच्चर समिति, रंगनाथ मिश्र आयोग की सिफारिशों तथा 2009 के अपने घोषणा पत्र के बहाने करना था तो फिर दिसंबर 2011 तक वह हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठी रही? धर्म आधारित आरक्षण संविधान में निषेध हो सकता है, लेकिन इसके आधार पर निर्धन मुस्लिम तबके की अनदेखी भी नहीं की जा सकती। खुद को मुसलमानों का हितैषी साबित करने वाली केंद्र सरकार ऐसा तब तक करती रही जब तक उत्तर प्रदेश के चुनाव सिर पर नहीं आ गए। चुनाव की पूर्व संध्या पर मुस्लिम आरक्षण की घोषणा इस समाज को बरगलाने के अतिरिक्त और कुछ नहीं। केंद्र सरकार ऐसा जाहिर कर रही है जैसे उसने साढ़े चार प्रतिशत आरक्षण की घोषणा कर कोई बड़ा फैसला किया है। सच्चाई इसके विपरीत है। अभी पिछड़े मुसलमानों को 27 प्रतिशत आरक्षण में से करीब तीन प्रतिशत का लाभ मिल रहा था। अब उनके साढ़े चार प्रतिशत आरक्षण में पिछड़े बौद्ध, सिख और ईसाई भी साझीदार होंगे। जाहिर है कि अब मुसलमान और घाटे में रहेंगे। बावजूद इसके कांग्रेस यह प्रचारित कर रही है कि वही मुस्लिम समाज की सबसे बड़ी हितैषी है। कुछ ऐसा ही प्रचारित करने के लिए पिछले दिनों राहुल गांधी ने उर्दू अखबारों के संपादकों को यह समझाया कि मुस्लिमों का भला इसलिए नहीं हो पा रहा है, क्योंकि प्रशासन में संघ समर्थक अफसर बैठे हैं और वे रोड़े अटका रहे हैं। अगर यह सरासर झूठ नहीं है तो फिर राहुल गांधी को यह भी पता होगा कि ऐसे अफसर कहां पर तैनात हैं और उनकी संख्या कितनी है? उन्हें यह भी बताना चाहिए कि उन्होंने इतनी सनसनीखेज जानकारी देश से और यहां तक कि अपनी सरकार से क्यों छिपाए रखी? इसके पहले सारी दुनिया ने यह देखा कि राजस्थान और केंद्र सरकार ने किस तरह सलमान रुश्दी पर रोक लगाकर अपनी भद पिटवाई। आम भारतीयों में बहुत कम ऐसे होंगे जिन्होंने सलमान रुश्दी की कृतियों को पढ़ा होगा, लेकिन वे सभी इससे परिचित होंगे कि सैटनिक वर्सेस में ऐसा कुछ लिखा गया था जिससे मुस्लिम समाज की भावनाएं आहत हुईं। कोई भी नहीं चाहेगा कि मुस्लिमों को आहत करने वाली इस पुस्तक को अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर प्रतिबंध मुक्त कर दिया जाए, लेकिन इस पुस्तक के लेखक सलमान रुश्दी को भारत आने से रोकने का समर्थन सिर्फ कट्टरपंथी ही कर सकते हैं। किसी को इससे हैरान नहीं होना चाहिए कि राजस्थान सरकार के साथ-साथ केंद्रीय सत्ता ने इन मुट्ठी भर कट्टरपंथियों के समक्ष बेहद शर्मनाक तरीके से समर्पण कर दिया और वह भी इसलिए ताकि कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों के वोट हासिल करने में कोई अड़चन न आने पाए। उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी की प्रतिष्ठा दांव पर हैं। यह जानना कठिन है कि रुश्दी के भारत न आने देने और यहां तक कि उनके वीडियो संबोधन पर रोक लगाने में उनकी कोई भूमिका है या नहीं, लेकिन इसमें शायद ही किसी को संदेह हो कि केंद्र सरकार ने राजस्थान सरकार को कट्टरपंथियों के आगे खुशी-खुशी नतमस्तक हो जाने दिया। यदि केंद्र सरकार राजस्थान सरकार को कोई निर्देश देने के बजाय मौन बनी रही अथवा वह ऐसा कोई दावा करती है कि इस मामले में उसकी कोई भूमिका नहीं तो फिर उसके अस्तित्व में होने का कोई मतलब नहीं रह जाता। यह शर्मनाक है कि राजस्थान और साथ ही केंद्र सरकार ने मुट्ठी भर कट्टरपंथियों के समक्ष हथियार डाल दिए। सलमान रुश्दी को भारत आने से रोकने के लिए राजस्थान सरकार ने कुछ मनगढं़त सूचनाओं का सहारा लिया। इसके बाद वीडियो संबोधन रोकने के लिए राजस्थान पुलिस ने आयोजकों को यह कहकर डराया कि यदि यह संबोधन हुआ तो आयोजन स्थल और आसपास मौजूद प्रदर्शनकारी हिंसा पर उतर आएंगे। यह शायद पहली बार है जब देश की पुलिस ने डरे हुए लोगों को सुरक्षा का आश्वासन देने के बजाय उन्हें और डराने का काम किया। आयोजकों के मुताबिक पुलिस ने उन्हें सूचना दी कि लोग कार्यक्रम में बाधा डालने और हिंसा करने के लिए आयोजन स्थल तक आ चुके हैं। पुलिस की कायरता की इससे बड़ी मिसाल और क्या हो सकती है कि उसके सामने कुछ लोग आयोजकों को हिंसा करने की धमकी दें। पहले सलमान रुश्दी के भारत न आ पाने और फिर उनके वीडियो संबोधन पर रोक लगने से भारत सरकार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मुंह दिखाने के काबिल नहीं रह गई है। एक पंथनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और कानून के शासन वाले देश के रूप में भारत की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नाक कटी है और इसके लिए राजस्थान सरकार से अधिक जिम्मेदार केंद्र सरकार है। रुश्दी के वीडियो संबोधन पर रोक से भारत की प्रतिष्ठा जिस तरह मिट्टी में मिली उस पर सरकार को सफाई देनी चाहिए, लेकिन वह ऐसा शायद ही करे और केंद्रीय सत्ता की शक्ति के मूल स्रोत सोनिया गांधी-राहुल गांधी से किसी स्पष्टीकरण की उम्मीद करना व्यर्थ है। एकाध अपवाद को छोड़कर ये दोनों नेता उन मुद्दों पर भूले-भटके ही विचार प्रकट करते हैं जो देश को उद्वेलित कर रहे होते हैं। सबसे निराशाजनक यह है कि कांग्रेस से ज्यादा राहुल गांधी का चिंतन दूषित होता जा रहा है? क्या यह दिग्विजय सिंह की संगत का असर है? (लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडीटर हैं)
साभार:-दैनिक जागरण

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