Sunday, January 22, 2012

राष्ट्रीय शर्म का विषय

विख्यात लेखक सलमान रुश्दी जिन कारणों से भारत नहीं आ सके वे भारत को दुनियाभर में शर्मिदा करने वाले हैं। एक सहिष्णु, पंथनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक राष्ट्र का भारत का दर्जा बुरी तरह प्रभावित हुआ है और इसके लिए सबसे अधिक जिम्मेदार है केंद्रीय सत्ता। केंद्र सरकार ने अपनी अकर्मण्यता से अपने मुख पर नए सिरे से कालिख मल ली है। उसने उन परिस्थितियों को दूर करने के लिए तनिक भी कोशिश नहीं की जो सलमान रुश्दी के भारत आगमन में बाधक बन रही थीं। इसके बजाय उसने ऐसा प्रदर्शित करने की अतिरिक्त कोशिश की कि यदि रुश्दी भारत आए तो सुरक्षा व्यवस्था के लिए खतरा पैदा हो सकता है। उसने राजस्थान के मुख्यमंत्री को सार्वजनिक रूप से यह कहने की स्वतंत्रता और सुविधा प्रदान की कि रुश्दी को जयपुर साहित्य सम्मेलन में नहीं आना चाहिए। ऐसे मुख्यमंत्री को तो एक दिन के लिए भी अपने पद पर नहीं रहना चाहिए जो किसी को अपनी मातृभूमि आने से रोकने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दे। रुश्दी का भारत न आ पाना लज्जा की बात तो है ही, केंद्रीय सत्ता के कट्टरपंथ के आगे नतमस्तक होने का नया प्रमाण भी है। खेद की बात यह नहीं है कि रुश्दी जयपुर साहित्य सम्मेलन में शिरकत नहीं कर सके, बल्कि यह है कि अपने देश आने के उनके अधिकार पर कट्टरपंथी ताकतों ने कब्जा कर लिया। यह कब्जा इसलिए हुआ, क्योंकि केंद्र सरकार ने खुशी-खुशी उनके समक्ष समर्पण कर दिया। केंद्र सरकार इससे अनभिज्ञ नहीं हो सकती कि सलमान रुश्दी अपनी विवादास्पद पुस्तक प्रतिबंधित होने के बाद कई बार भारत आ चुके हैं। यही नहीं वह जयपुर साहित्य सम्मेलन में भी शिरकत कर चुके हैं। सारी दुनिया यह जान रही है कि इस बार वह इस सम्मेलन में सिर्फ इसलिए नहीं आ सके, क्योंकि केंद्रीय सत्ता का नेतृत्व कर रही कांग्रेस विधानसभा चुनावों में मुस्लिम वोट हासिल करने के लिए कुछ भी करने को तैयार है। इसमें दोराय नहीं कि रुश्दी विवादास्पद लेखक हैं और मुस्लिम समाज का एक बड़ा तबका उन्हें पसंद नहीं करता। इस तबके को रुश्दी को नापसंद करने, उनके लेखन को खारिज करने और यहां तक कि उनकी भारत यात्रा के विरोध में धरना-प्रदर्शन करने का अधिकार है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि उसे भारतीय मूल के इस लेखक को अपने देश आने से रोकने का भी अधिकार मिल गया है। बेहतर होता कि रुश्दी भारत आने का साहस जुटाते और केंद्र सरकार उनकी सुरक्षा के हरसंभव उपाय करती। कांग्रेस यह कहकर देश को गुमराह नहीं कर सकती कि रुश्दी का भारत न आना उनका अपना निर्णय है। वह इस निर्णय पर इसलिए पहुंचे, क्योंकि केंद्र सरकार ने एक बार भी यह कहने की हिम्मत नहीं जुटाई कि वह उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करेगी। हो सकता है कि कट्टरपंथियों के मन की मुराद पूरी करने से कांग्रेस को कुछ अतिरिक्त वोट मिल जाएं, लेकिन अब उसे यह कहना बिलकुल भी शोभा नहीं देगा कि वह कट्टरपंथियों से मुकाबले को तैयार है। कांग्रेस ने अपनी बदनामी तो कराई ही है, देश की प्रतिष्ठा पर दाग लगाने का भी काम किया है। रुश्दी के भारत न आने से लेखक बिरादरी नाराज है, लेकिन यह खेदजनक है कि सरकार के रवैये पर नाराजगी जताने वाले कलम के सिपाही मुट्ठी भर भी नहीं हैं।
साभार:-दैनिक जागरण

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