Sunday, January 29, 2012

लोकलुभावन वायदे उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा की ओर से जारी घोषणा पत्र और कांग्रेस की ओर से पेश किए गए दृष्टि पत्र का मूल्य-महत्व तभी है जब ये दल सत्ता में आने में सफल होंगे। पता नहीं ऐसा होगा या नहीं, लेकिन यह समझना कठिन है कि ये दोनों दल जिस तरह उत्तर प्रदेश का उत्थान करना चाहते हैं वैसे ही उन राज्यों का क्यों नहीं कर रहे हैं जहां वे सत्ता में हैं? बात चाहे भाजपा शासित राज्यों की हो अथवा कांग्रेस शासन वाले राज्यों की-कहीं पर भी वैसे अनेक कार्य होते नहीं दिखते जैसे उत्तर प्रदेश के लिए जारी उनके घोषणा पत्र और दृष्टि पत्र में दर्ज किए गए हैं। कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश की जनता से जो अनेक वायदे किए हैं उनके तहत वह किसानों को 6 प्रतिशत ब्याज पर ऋण उपलब्ध कराएगी, मुख्यमंत्री को लोकायुक्त के दायरे में लाएगी, प्रमुख नदियों को स्वच्छ व अविरल बनाएगी, हर गांव में विद्यालय और हर ढाई सौ परिवार पर इंटरमीडिएट स्कूल स्थापित करेगी। क्या कांग्रेस शासित राज्यों में इस तरह के कार्य हो रहे हैं? कुछ इसी तरह के सवाल के दायरे में भाजपा भी आएगी, जिसने अपने घोषणा पत्र में दो हजार रुपये बेरोजगारी भत्ता देने, लोकायुक्त को शक्तिशाली बनाने, पुलिस प्रशासन को राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त करने, कृषि कार्य के लिए 24 घंटे बिजली देने जैसी तमाम लोकलुभावन घोषणाएं की हैं। इस पर आश्चर्य नहीं कि दोनों दलों के वायदों में काफी कुछ समानता दिख रही है, क्योंकि दोनों का उद्देश्य मतदाताओं को लुभाना है। यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि समाजवादी पार्टी और पंजाब में अकाली दल की तरह से भाजपा और कांग्रेस ने कंप्यूटर की उपयोगिता को महत्व दिया है। यह अच्छी बात है कि ये सभी दल छात्रों को कंप्यूटर और लैपटॉप से लैस करना चाहते हैं, लेकिन क्या उन्हें इसका आभास है कि शिक्षा का बुनियादी ढांचा कितना जर्जर है? अभी हाल में सामने आया एक सर्वेक्षण यही बता रहा है कि उत्तर भारत के राज्यों में प्राथमिक शिक्षा की दशा दयनीय बनी हुई है। इससे इंकार नहीं कि कंप्यूटर और लैपटॉप ज्ञान एवं तरक्की के माध्यम बन गए हैं, लेकिन यदि शिक्षा की बुनियाद ही ठीक नहीं होगी तो इन सुविधाओं के जरिये छात्रों का भविष्य कैसे संवरेगा? घोषणा पत्र कितने भी लोकलुभावन क्यों न हों, इसमें दो राय नहीं कि उनका मुख्य उद्देश्य आम जनता के समक्ष भविष्य की खुशनुमा तस्वीर पेश करना भर होता है। अब तक का अनुभव यही बताता है कि सत्ता में आने के बाद राजनीतिक दल अपने घोषणा पत्र को ठंडे बस्ते में डालना पसंद करते हैं या फिर उनमें दर्ज घोषणाओं को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार के समक्ष हाथ फैलाते हैं। यह किसी से छिपा नहीं कि तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक ने सत्ता में आते ही अपने घोषणा पत्र में किए गए अनेक वायदों को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार से सहायता मांगनी शुरू कर दी है। राजनीतिक दलों की ओर से जिस तरह के घोषणापत्र सामने आ रहे हैं उन्हें देखते हुए अब यह आवश्यक हो चुका है कि चुनाव आयोग उन पर इस दृष्टि से विचार करे कि उनका एकमात्र उद्देश्य मतदाताओं को प्रलोभन देना होता है। चूंकि घोषणा पत्रों के संदर्भ में चुनाव आयोग का कोई जोर नहीं चल पा रहा है इसलिए अब उनमें आकाश के तारे तोड़कर लाने जैसी बातें की जाने लगी हैं।
साभार:-दैनिक जागरण

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