Sunday, January 29, 2012

राहुल गांधी का दुर्भाग्यपूर्ण चिंतन

यह जितना दुर्भाग्यपूर्ण है उतना ही निराशाजनक भी कि राहुल गांधी यह मानकर चल रहे हैं कि मुस्लिम समुदाय का भला इसलिए नहीं हो पा रहा है, क्योंकि प्रशासन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समर्थक अधिकारी बैठे हुए हैं। उन्होंने ऐसे कथित अधिकारियों को सांप्रदायिक करार देते हुए यह भी सिद्ध करने की कोशिश की कि उन्हें संघ ने अपने मोहरे के रूप में फिट कर रखा है। यह तो राहुल गांधी ही बता सकते हैं कि उन्होंने उर्दू दैनिकों के संपादकों के साथ अपनी मुलाकात में भारतीय प्रशासन की यह विकृत तस्वीर किस आधार पर पेश की, लेकिन इस पर यकीन करना कठिन है कि संघ इतना समर्थ है कि वह एक खास विचारधारा वाले अधिकारियों को प्रशासनिक तंत्र में फिट करने में समर्थ है। क्या संघ किसी किस्म की भर्ती परीक्षा आयोजित करता है? राहुल गांधी ने मुसलमानों की राह का रोड़ा बनने वाले संघ के तथाकथित मोहरों के बारे में जो उदाहरण दिया वह तो और भी हास्यास्पद है। उनकी मानें तो मालेगांव विस्फोट में अदालत से बरी मुस्लिम युवकों को सांप्रदायिक मानसिकता वाले अधिकारी निर्दोष मानने को तैयार नहीं हैं। क्या वह यह कहना चाहते हैं कि ऐसे कथित अधिकारियों के सामने अदालत और कानून भी बेअसर है? इस पर गौर किया जाना चाहिए कि महाराष्ट्र में कांग्रेस का ही शासन है और मालेगांव विस्फोट के लिए मुस्लिम युवकों को जिम्मेदार बताने का काम भी कांग्रेसी सत्ता के दौरान हुआ। क्या देश यह मान ले कि महाराष्ट्र में संघ के मोहरे इतने सक्षम हैं कि उनके आगे सरकार की भी नहीं चल पा रही है? सवाल यह भी है कि यदि स्थिति इतनी गंभीर थी तो उन्होंने यह मामला संसद में क्यों नहीं उठाया और उसे सरकार के संज्ञान में क्यों नहीं लाए? क्या कारण है कि उनकी ओर से इस बारे में कोई सार्वजनिक वक्तव्य नहीं दिया गया? आखिर इतने बड़े मामले को केवल उर्दू दैनिकों के संपादकों के समक्ष उठाने का क्या मतलब? क्या इसलिए ताकि मुस्लिम समाज का खास तौर पर ध्रुवीकरण किया जा सके? मुस्लिम समाज के वोट पाने के लिए कांग्रेस जैसे हथकंडे अपना रही है उससे उसका नुकसान होना तय है, क्योंकि प्रतिक्रियास्वरूप अन्य वर्गो में धु्रवीकरण होना स्वाभाविक है। राहुल गांधी ने उर्दू अखबारों के संपादकों से अपनी मुलाकात में यह भी स्पष्ट किया कि भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे की ओर से छेड़ा गया आंदोलन वस्तुत: संघ की साजिश है। उनके हिसाब से संघ ने अन्ना के जरिये यह आंदोलन इसलिए छेड़ा, क्योंकि बम धमाकों में अपना नाम आने से वह हताश हो गया था। ऐसे विचित्र विचारों के लिए कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह जाने जाते हैं। यह पहली बार है जब राहुल गांधी दिग्विजय सिंह की भाषा बोल रहे हैं। क्या इससे अधिक निराशाजनक और कुछ हो सकता है कि जो आंदोलन स्वत: स्फूर्त ढंग से खड़ा हुआ और जिसने सारे देश को आंदोलित किया उसे राहुल गांधी एक साजिश मान रहे हैं? उनके हिसाब से उन्होंने प्रधानमंत्री को अन्ना के आंदोलन को नजरअंदाज करने की सलाह दी थी। कहीं ऐसा तो नहीं कि इसीलिए लोकपाल विधेयक तैयार करने में इतनी हीलाहवाली की गई और फिर ऐसी परिस्थितियां पैदा की गईं जिससे वह पारित ही न हो सके? सच्चाई जो भी हो, राहुल गांधी के विचार देश की जनता और विशेष रूप से युवाओं को बुरी तरह निराश करने वाले हैं। उनसे ऐसे विचारों की अपेक्षा बिलकुल भी नहीं थी।
साभार:-दैनिक जागरण

No comments: