Sunday, January 22, 2012

छल-कपट की राजनीति

निर्वाचन आयोग की नोटिस और नाराजगी के बाद केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद के नौ प्रतिशत मुस्लिम आरक्षण संबंधी बयान को उनका निजी विचार बताने के 24 घंटे के अंदर ही कांग्रेस ने जिस तरह पलटी खाते हुए यह कहा कि वह अल्पसंख्यक आरक्षण बढ़ाने के पक्ष में है उससे यह साफ हो गया कि उसके सिर सांप्रदायिक राजनीति का भूत सवार हो गया है। कांग्रेस ने सलमान खुर्शीद के कथित निजी विचार को जिस तरह गले लगाया उससे इसकी आशंका और बढ़ गई है कि यह राष्ट्रीय दल उन राजनीतिक दलों को भी मात दे सकता है जो बिना किसी संकोच जाति और संप्रदाय की राजनीति करते हैं। उस देश की राजनीति के पतन का अनुमान अच्छे से लगाया जाता है जहां मुख्यधारा के राजनीतिक दल खुलकर जाति-मजहब की राजनीति करते हों। इस पर आश्चर्य नहीं कि कांग्रेस की ओर से अल्पसंख्यक अर्थात मुस्लिम आरक्षण में बढ़ोतरी के संकेत देते ही समाजवादी पार्टी ने 18 प्रतिशत आरक्षण की पेशकश कर दी। कांग्रेस चुनाव जीतने के लिए जैसे हथकंडे अपनाने पर उतर आई है उससे यह और अच्छे से स्पष्ट हो रहा है कि देश का सबसे बड़ा और पुराना राजनीतिक दल जानबूझकर अपनी गरिमा से खिलवाड़ करने पर आमादा है। नि:संदेह यह समझ आता है कि कांग्रेस पांच राज्यों और विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में अपना खोया हुआ जनाधार पाने के लिए बुरी तरह बेचैन है, लेकिन इसकी उम्मीद नहीं थी कि इसके लिए वह समाज का मजहबी आधार पर ध्रुवीकरण करने की कोशिश करेगी। उसकी यह कोशिश विभाजन पैदा करने वाली राजनीति का पर्याय है। पहले साढ़े चार प्रतिशत अल्पसंख्यक आरक्षण का फैसला लेने और फिर उसे बढ़ाकर नौ फीसदी करने के पीछे कांग्रेस सच्चर समिति और रंगनाथ मिश्र आयोग की सिफारिशों के साथ-साथ 2009 के अपने घोषणा पत्र के कथित वायदे की आड़ ले रही है। यह और कुछ नहीं, अल्पसंख्यक समाज सहित पूरे देश को धोखा देने की कोशिश है, क्योंकि सब जानते हैं कि उक्त सिफारिशें सामने आए वर्षो बीत चुके हैं और उसका घोषणा पत्र भी करीब तीन वर्ष पुराना पड़ चुका है। कांग्रेस और साथ ही उसके नेतृत्व वाली केंद्रीय सत्ता को पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के ठीक दो दिन पहले जिस तरह सच्चर समिति और रंगनाथ मिश्र आयोग की सिफारिशें याद आईं उससे यह स्वत: स्पष्ट हो जाता है कि वह 2009 से लेकर अब तक हाथ पर हाथ धरे बैठे मुस्लिम समाज की दुर्दशा देखती रही। यदि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करना उसके लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न नहीं बनता तो वह मुस्लिम समाज के पिछड़ेपन की परवाह अभी भी नहीं करती। पता नहीं मुस्लिम समाज कांग्रेस के इस चुनावी हथकंडे को समझ सकेगा या नहीं, लेकिन अब जब सलमान खुर्शीद का निजी विचार कांग्रेस की आधिकारिक नीति बन गया है तब फिर चुनाव आयोग को कुछ सख्ती दिखानी ही होगी। यदि यह आयोग चुनाव जीतने के लिए की जाने वाली मनमानी घोषणाओं पर कठोर रवैये का परिचय नहीं देता तो उसके लिए अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा कर पाना मुश्किल होगा। यह ठीक नहीं कि चुनाव आयोग सलमान खुर्शीद के नौ प्रतिशत मुस्लिम आरक्षण संबंधी अपने विचार पर अडिग रहने के बावजूद उनके खिलाफ कार्रवाई करने के मामले में हिचकिचाहट का परिचय दे रहा है।
साभार:-दैनिक जागरण

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