Monday, March 5, 2012

राष्ट्रीय हितों पर राजनीति

राष्ट्रीय हित के विषय किस तरह संकीर्ण राजनीति की भेंट चढ़ते हैं, इसका ताजा प्रमाण है रेलवे सुरक्षा बल संबंधी संशोधन विधेयक पर कुछ राज्य सरकारों की आपत्तियां और उन पर केंद्र सरकार का दृष्टिकोण। यह निराशाजनक है कि रेलवे सुरक्षा बल को और अधिकार संपन्न बनाने की पहल पर राज्यों को उसी तरह कष्ट हो रहा है जैसे राष्ट्रीय आतंकवाद निरोधक केंद्र अर्थात एनसीटीसी की स्थापना पर। राज्यों की आपत्तियों की चलते यह केंद्र तय तिथि यानी एक मार्च से सक्रिय नहीं हो सका। हालांकि केंद्रीय सत्ता इस उम्मीद में है कि राज्यों के पुलिस महानिदेशकों, आतंकवाद निरोधक दस्तों के प्रमुखों और गृह सचिवों की आगामी बैठक में एनसीटीसी पर जारी गतिरोध दूर हो जाएगा, लेकिन इसके आसार कम ही नजर आ रहे हैं। एनसीटीसी पर ममता बनर्जी के साथ मिलकर विरोध का झंडा बुलंद करने वाले ओडिसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक इस मुद्दे पर मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाने पर जोर दे रहे हैं। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के लिए बनाई जा रही इस नई व्यवस्था पर विचार-विमर्श करने के लिए मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाने में कोई हर्ज नहीं। सच तो यह है कि केंद्र सरकार को पहले ही राज्य सरकारों से सलाह-मशविरा करना चाहिए था, लेकिन ऐसी बैठकें समस्या के समाधान की गारंटी नहीं। नक्सलवाद पर नियंत्रण के लिए न जाने कितनी बार मुख्यमंत्रियों की बैठकें हो चुकी हैं, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात वाला ही है। यह समय ही बताएगा कि एनसीटीसी पर जारी गतिरोध कैसे दूर होगा और दूर होगा भी या नहीं, लेकिन यदि किन्हीं कारणों से यह संस्था सक्रिय नहीं हो सकी तो उससे सबसे अधिक राहत आतंकी तत्वों को मिलेगी। कुछ ऐसा ही मामला रेलवे सुरक्षा बल को और अधिकार देने का भी है। रेल मंत्रालय यह चाहता है कि रेलवे सुरक्षा बल को ऐसे अधिकार मिलें जिससे वह रेल संपत्ति के साथ-साथ रेल यात्रियों की सुरक्षा करने में भी समर्थ हो जाए। इसके लिए उसे पुलिस सरीखे अधिकार देने की तैयारी है। यह तैयारी राज्यों को खटक रही है। उनका वही पुराना तर्क है कि इससे हमारे अधिकारों पर कैंची चलेगी। यह समझना कठिन है कि सुरक्षा के हर मामले पर राज्य सरकारें अपने अधिकारियों में कटौती का रोना क्यों रोने लगती हैं? वे इतना ही नहीं करतीं, बल्कि संघीय ढांचे में छेड़छाड़ का आरोप भी लगाने लगती हैं। यह रवैया उचित नहीं। बदली हुई परिस्थितियों में कानून एवं व्यवस्था के तौर-तरीकों में कुछ फेरबदल करना समय की मांग है। इस संदर्भ में यह भी एक सच्चाई है कि राज्य सरकारें चाहे जो दावा करें, राजकीय रेलवे पुलिस अपनी जिम्मेदारियों का सही तरह निर्वहन नहीं कर पा रही है। यह आश्चर्यजनक है कि रेलवे सुरक्षा बल संबंधी विधेयक में संशोधन पर राज्यों की आपत्तियों के बावजूद केंद्र सरकार ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि राज्य सरकारें अपनी समस्या रेल मंत्री के समक्ष रखें। क्या रेल मंत्रालय केंद्र सरकार का हिस्सा नहीं? ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार ने ममता बनर्जी को यह बताने के लिए इस मामले से पल्ला झाड़ा कि यदि वह एनसीटीसी पर आपत्ति जताएंगी तो रेल मंत्री के रूप में उनके द्वारा प्रस्तावित विधेयक पर भी अड़ंगे लग सकते हैं। सच्चाई जो भी हो, राष्ट्रहित के मुद्दों पर जैसे को तैसा वाली राजनीति का परिचय नहीं दिया जाना चाहिए।
साभार :- दैनिक जागरण

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