Wednesday, March 28, 2012

सनसनीखेज

थलसेना प्रमुख जनरल वीके सिंह का यह कथन सनसनीखेज अवश्य है कि उन्हें एक सौदे को मंजूरी देने के एवज में 14 करोड़ रुपये की रिश्वत की पेशकश की गई थी, लेकिन अविश्वसनीय नहीं। नि:संदेह जनरल वीके सिंह की ओर से यह स्पष्ट करने की जरूरत है कि वह तत्काल ही इस मामले को सामने क्यों नहीं लाए, लेकिन उनका खुलासा इसलिए सच के करीब और सामान्य सा नजर आता है, क्योंकि रक्षा संबंधी सौदों में दलाली के लेन-देन की सुगबुगाहट जारी ही रहती है। यह हथियारों, उपकरणों से लेकर अन्य सामग्रियों की खरीद को लेकर भी सुनाई देती रहती है। यह तब है जब पारदर्शिता और जवाबदेही का ढोल पीटने के साथ यह दावा भी किया जाता है कि रक्षा संबंधी सौदों में बिचौलियों की भूमिका खत्म कर दी गई है। क्या यह माना जाए कि बिचौलियों की भूमिका केवल दूसरे देशों से किए जाने वाले रक्षा सौदों में ही खत्म की गई है? यह घोर लज्जाजनक है कि स्वतंत्रता के तुरंत बाद यानी 1948 में जीप घोटाले से दो-चार होने वाले देश को अब यह सुनने को मिल रहा है कि किसी की ओर से ट्रक घोटाले को अंजाम देने की कोशिश की गई। इससे साफ पता चलता है कि उन तौर-तरीकों को दूर करने के लिए कहीं कोई कोशिश नहीं की गई जिससे घपलों-घोटालों को रोका जा सके। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि जनरल वीके सिंह के बयान के बाद रक्षा मंत्री एके एंटनी ने उन्हें रिश्वत की पेशकश किए जाने के मामले की जांच सीबीआइ को सौंपने के आदेश दिए हैं, क्योंकि यह प्रश्न अनुत्तरित है कि जब सेनाध्यक्ष ने उसी समय रक्षा मंत्री को इस प्रकरण से अवगत करा दिया था तो फिर जांच कराने का निर्णय अब क्यों लिया जा रहा है? क्या रक्षा मंत्री इसका इंतजार कर रहे थे कि सेना प्रमुख मामले को सार्वजनिक करें? सवाल यह भी है कि सेना प्रमुख ने रिश्वत की पेशकश के इस मामले को यूं ही क्यों छोड़ दिया था? इन सवालों का जवाब चाहे जो हो, यह स्पष्ट है कि हमारा सरकारी तंत्र भ्रष्टाचार से निपटने की कोई इच्छाशक्ति नहीं रखता। यह शर्मनाक है कि देश में ऐसे हालात हैं कि सीधे सेनाध्यक्ष को रिश्वत की पेशकश की जा सकती है। जिस तरह सेनाध्यक्ष के सामने उपस्थित होकर रिश्वत की पेशकश की गई उससे घोटालेबाजों के दुस्साहस का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। क्या कोई यह भरोसा दिलाने के लिए तैयार है कि सेना की जरूरतों को पूरा करने के लिए समय-समय पर जो तमाम सौदे होते रहते हैं वे ऐसे घोटालेबाजों के बगैर ही होते हैं? यह विचित्र है कि थलसेना प्रमुख के आरोप सार्वजनिक होने के बाद संसद के दोनों सदनों में हंगामा हुआ। आखिर यह हंगामा किस कारण? क्या संसद सदस्य यह नहीं जानते हैं कि सरकारी तंत्र घोटालेबाजों से घिरा हुआ है और इसका एक प्रमुख कारण उन्हें हतोत्साहित और साथ ही दंडित करने के लिए उपयुक्त नियम-कानूनों का अभाव है। यदि केंद्र सरकार सेना प्रमुख के आरोपों को वास्तव में गंभीर मान रही है तो तात्कालिक सक्रियता दिखाकर मामले को शांत करने के बजाय कोशिश इस बात की होनी चाहिए कि उन कारणों का निवारण किया जाए जिनके चलते घपले-घोटाले थम नहीं पा रहे हैं। रक्षा सौदों में घपले-घोटालों को रोकने के लिए तो विशेष प्रयास होने चाहिए, क्योंकि कई बार कुछ सामान्य प्रकरण भी गोपनीयता के आवरण में ढके रहते हैं।
साभार :- दैनिक जागरण

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