Monday, March 5, 2012

संकीर्ण राजनीति का नमूना

शासन में बदलाव किस तरह राष्ट्रीय प्राथमिकताओं में फेरबदल का कारण बनता है, इसका एक और प्रमाण है उच्चतम न्यायालय की ओर से केंद्र सरकार को दिया गया यह निर्देश कि वह नदियों को जोड़ने की परियोजना को समयबद्ध तरीके से लागू करे। उच्चतम न्यायालय की ओर से इस परियोजना को राष्ट्रहित में बताए जाने के बाद केंद्र सरकार की ओर से इस बारे में स्पष्टीकरण दिया जाना चाहिए कि इसे ठंडे बस्ते में क्यों डाला गया? यदि उसने इस परियोजना से सिर्फ इसलिए मुंह फेरा, क्योंकि उसे विरोधी दल की सरकार अर्थात राजग ने शुरू करने की सोची थी तो इससे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण और कुछ नहीं हो सकता। ऐसा लगता है कि सत्ता में बैठे लोग राष्ट्रहित से अधिक महत्व दलगत हित को देते हैं। यदि ऐसा कुछ नहीं है तो फिर किसी को यह बताना चाहिए कि 2004 में इस परियोजना पर विराम क्यों लग गया? क्या केंद्र सरकार यह अहसास करेगी कि संकीर्ण राजनीति के फेर में उसने आठ वर्ष बर्बाद कर दिए? यदि संप्रग सरकार ने नदी जोड़ो परियोजना की उपेक्षा नहीं की होती तो इन आठ वर्षो में इस परियोजना का एक बड़ा हिस्सा पूरा किया जा सकता था। अब न केवल नए सिरे से शुरुआत करनी होगी, बल्कि बढ़ी हुई लागत भी वहन करनी पड़ेगी। कोई भी समझ सकता है कि यह बढ़ी हुई लागत अरबों रुपये में होगी। नदी जोड़ो परियोजना को आगे बढ़ाने संबंधी उच्चतम न्यायालय का निर्देश एक तरह से केंद्र सरकार के कामकाज और साथ ही रवैये पर प्रतिकूल टिप्पणी है। ऐसा इसलिए आसानी से कहा जा सकता है, क्योंकि शीर्ष अदालत ने इस परियोजना के क्रियान्वयन के लिए एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन भी कर दिया है। यह निराशाजनक है कि उच्चतम न्यायालय को वह काम करना पड़ रहा है जो मूलत: केंद्रीय सत्ता को करना चाहिए था। विडंबना यह है कि यह पहला ऐसा मामला नहीं जिसमें न्यायपालिका ने कार्यपालिका को उसके अधिकार और कर्तव्य की याद दिलाई हो। इसके पहले भी अन्य अनेक मामलों में न्यायपालिका को कार्यपालिका के कार्यक्षेत्र में दखल देना पड़ा है। बात चाहे काले धन के Fोतों का पता लगाने और उसे वापस लाने की हो अथवा सार्वजनिक वितरण प्रणाली को दुरुस्त करने की-दोनों ही मामले ऐसे थे जिसमें न्यायपालिका के हस्तक्षेप की कहीं कोई आवश्यकता नहीं थी, लेकिन उसे मजबूरी में ऐसा करना पड़ा। यदि सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग राष्ट्रहित के सवालों पर संकीर्ण राजनीति और साथ ही कमजोर इच्छाशक्ति का परिचय देंगे तो वे कर्तव्य पालन में हीलाहवाली के उदाहरण ही पेश करेंगे। हालांकि नदी जोड़ने की परियोजना को बेरोकटोक आगे बढ़ाने के लिए उच्चतम न्यायालय ने जो उच्चाधिकार प्राप्त समिति गठित की है उसमें जल संसाधन, वन एवं पर्यावरण, वित्त मंत्रालय के साथ-साथ योजना आयोग के सदस्य भी शामिल किए गए हैं, लेकिन इस सबके बावजूद इसके प्रति सुनिश्चित नहीं हुआ जा सकता कि यह परियोजना तेजी से आगे बढ़ सकेगी। ऐसा तभी हो सकता है जब केंद्र सरकार और साथ ही राज्य सरकारें इस परियोजना को अमल में लाने के लिए वास्तव में प्रतिबद्ध दिखेंगी।
साभार :- दैनिक जागरण

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