साभार :- दैनिक जागरण
Monday, March 5, 2012
सवालों भरी गिरफ्तारी
उत्तर प्रदेश में पांच हजार करोड़ वाले एनआरएचएम घोटाले में मुख्यमंत्री मायावती के करीबी रहे तत्कालीन परिवार कल्याण मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा की गिरफ्तारी का समय कई सवाल खड़े करने वाला है। उत्तर प्रदेश में मतदान का आखिरी चरण समाप्त होते ही कुशवाहा की गिरफ्तारी से देश को यही संदेश गया है कि केंद्रीय जांच ब्यूरो चुनाव खत्म होने का इंतजार कर रहा था। क्या यह महज संयोग है कि जैसे ही मतदान की समय सीमा खत्म हुई, सीबीआइ को कुशवाहा को गिरफ्तार करने की जरूरत पड़ गई? क्या सीबीआइ के पास इस कथित संयोग से बचने और देश की जनता को गलत संदेश देने से बचने का कोई उपाय नहीं था? यदि कुशवाहा की गिरफ्तारी जरूरी हो गई थी तो फिर मतदान का आखिरी चरण खत्म होने का इंतजार क्यों किया गया? क्या चुनाव के कारण कुशवाहा की गिरफ्तारी को जानबूझकर टाला गया? क्या नेताओं के भ्रष्टाचार के मामलेमें अब सीबीआइ को यह भी देखना पड़ता है कि संबंधित राज्य में चुनाव हो रहे हैं या नहीं? यदि यूपी में चुनाव नहीं हो रहे होते तो क्या कुशवाहा बहुत पहले ही गिरफ्तार हो चुके होते? अगर चुनाव के कुछ और चरण बाकी होते तो क्या वह गिरफ्तारी से बचे रहते? दरअसल ये वे सवाल हैं जिनके जवाब सामने आने ही चाहिए-इसलिए और भी, क्योंकि ऐसे ही सवाल सीबीआइ की साख को प्रभावित करते हैं। इस संदर्भ में इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि नेताओं से जुड़े भ्रष्टाचार में सच्चाई का पता लगाने और दोषियों को दंड दिलाने में सीबीआइ का रिकार्ड बहुत ही निराशाजनक है। इस जांच एजेंसी को इस पर चिंतन-मनन करना ही होगा कि नेताओं से जुड़े घपले-घोटालों में वह सही ढंग से जांच क्यों नहीं कर पाती? सच तो यह है कि इस सवाल का जवाब देने की जिम्मेदारी बहुत कुछ केंद्रीय सत्ता पर भी है। केंद्र सरकार लाख कहे कि सीबीआइ एक स्वायत्त संस्था है और उसके कामकाज में उसका कहीं कोई दखल नहीं, लेकिन तथ्य कुछ और ही कहानी बयान करते हैं। सच्चाई यह है कि सीबीआइ पूरी तरह स्वायत्त नहीं और उसे विभिन्न मामलों में सरकार के कई विभागों का मुंह ताकना पड़ता है। इसमें दो राय नहीं कि एनआरएचएम घोटाले में बाबू सिंह कुशवाहा की गिरफ्तारी अपेक्षित थी, लेकिन इसकी कल्पना नहीं की जा रही थी कि उनकी गिरफ्तारी का फैसला राजनीतिक लाभ-हानि के नजरिए से किया जाएगा। बाबू सिंह कुशवाहा की गिरफ्तारी पर भाजपा की आपत्ति स्वाभाविक है, लेकिन उसका कोई विशेष मूल्य इसलिए नहीं, क्योंकि एनआरएचएम घोटाले के समय वह परिवार कल्याण मंत्री थे और अनेक फैसले उनके ही जरिये हुए। बाबू सिंह कुशवाहा की इस दलील में कुछ दम हो सकता है कि घोटाले के लिए अन्य लोग भी जिम्मेदार हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि उन्हें निर्दोष मान लिया जाए। इस घोटाले में बाबू सिंह कुशवाहा के रूप में यह पहली बड़ी गिरफ्तारी है। देखना यह है कि सीबीआइ इस घोटाले में शामिल माने जा रहे अन्य बड़े कद वाले लोगों पर कब हाथ डालती है? यह सही है कि पिछले कुछ समय से सीबीआइ ने अपनी सक्रियता तेज की है, लेकिन यह कहना कठिन है कि वह समय रहते दूध का दूध और पानी का पानी कर सकने में सक्षम होगी।
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