Friday, September 2, 2011

आधी जीत के बाद

लोकपाल संबंधी तीन प्रमुख मुद्दों पर संसद की सहमति को आधी जीत बताने वाले अन्ना हजारे ने अपना अनशन तोड़ने के बाद गांवों और किसानों, शिक्षा एवं पर्यावरण के साथ चुनाव प्रक्रिया से जुड़े सवालों का समाधान करने की जो बात कही उससे असहमति जताने का कोई मतलब नहीं। एक ओर जहां भ्रष्टाचार पर प्रभावी ढंग से अंकुश लगाने के लिए अन्य अनेक उपायों के साथ चुनाव सुधार अनिवार्य हो गए हैं वहीं दूसरी ओर देश के समग्र एवं संतुलित विकास के लिए यह अनिवार्य हो गया है कि कृषि, किसान एवं जमीन से जुड़े मामलों को अविलंब सुलझाने की कोई ठोस पहल की जाए। यह इसलिए और आवश्यक है, क्योंकि भले ही भारत एक कृषि प्रधान देश हो, लेकिन सच्चाई यह है कि कृषि से जुड़े मसले ही सर्वाधिक उपेक्षित हैं। इसके अतिरिक्त यह भी एक सच्चाई है कि अन्ना हजारे के आंदोलन ने मुख्य रूप से शहरी भारत में ही चेतना जागृत की है। जितनी जरूरत ग्रामीण भारत में चेतना जागृत करने की है उतनी ही उसकी समस्याओं का समाधान करने की भी है। चूंकि तमाम उपायों के बावजूद कृषि की स्थिति में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हो पा रहा है इसलिए ग्रामीण भारत शहरी भारत से कदमताल नहीं कर पा रहा है। हमारी राजनीति इस सबसे अच्छी तरह परिचित है, लेकिन वह बुनियादी बदलाव लाने वाले कोई कदम नहीं उठा पा रही है। क्या इससे बड़ी विडंबना और कोई हो सकती है कि एक अदद भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन में अनावश्यक देरी हो रही है। जब राजनीतिक दल किसानों के लिए जीवन-मरण का प्रश्न बन गए मुद्दे को नहीं सुलझा पा रहे हैं तब फिर यह अपेक्षा कैसे की जाए कि गांवों और किसानों के मुद्दे उनकी प्राथमिकता में हैं? अन्ना हजारे ने संकेत दिया है कि वह भ्रष्टाचार समेत अन्य अनेक समस्याओं का समाधान करने के लिए फिर से अनशन-आंदोलन कर सकते हैं। क्या राजनीतिक दल यह सुनिश्चित करेंगे कि उन्हें ऐसा करने की जरूरत न पड़े? राजनीतिक दलों को यह अहसास हो जाना चाहिए कि अन्ना हजारे के आंदोलन ने उनकी पोल खोलकर रख दी है। अन्ना हजारे के आंदोलन के तौर-तरीकों से तर्कपूर्ण असहमति दर्शाने के बावजूद वे इस सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ सकते कि राजनीति आम जनता के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं कर सकी। इस आंदोलन ने यह अच्छी तरह साबित किया कि राजनीति को जो काम करने चाहिए थे वे उसने चेताए जाने के बावजूद नहीं किए। कम से कम अब तो राजनीतिक दलों को अन्ना हजारे और साथ ही आम जनता के आंदोलन से उपजे संदेश को सुन लेना चाहिए। इस आंदोलन के जरिए जनता ने न केवल अपनी ताकत पहचान ली है, बल्कि वह अपने अधिकारों के प्रति भी जागरूक हो गई है। ऐसे में यह समय की मांग है कि ऐसी परिस्थितियां न पैदा होने दी जाएं कि जनता को सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर होना पड़े। अन्ना हजारे का अनशन टूटने की घोषणा के साथ देश में जनतंत्र की जीत का जो उत्सव मनाया जा रहा है उसके उल्लास की अनदेखी किसी को भी नहीं करनी चाहिए और कम से कम राजनीतिक नेतृत्व को तो बिल्कुल भी नहीं।
साभार:-दैनिक जागरण
http://in.jagran.yahoo.com/epaper/article/index.php?page=article&choice=print_article&location=49&category=&articleid=111719847669066216

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