Friday, September 2, 2011

निम्नतम स्तर की राजनीति

यह जितना आपत्तिजनक है उतना ही दुर्भाग्यपूर्ण कि राजीव गांधी के हत्यारों को फांसी देने का समय जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा है वैसे-वैसे राजनीतिक संकीर्णता का प्रदर्शन तेज हो रहा है। अभी तक तो कुछ स्थानीय संगठन ही राजीव गांधी के हत्यारों को फांसी देने का विरोध कर रहे थे, लेकिन अब डीएमके प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री करुणानिधि भी ऐसे संगठनों के साथ खड़े हो गए हैं। उन्होंने केंद्र सरकार से जिस तरह यह अपील की कि यदि इन हत्यारों को छोड़ दिया जाए तो तमिल लोग खुश होंगे उससे यही स्पष्ट होता है कि वह राज्य के लोगों की भावनाएं भड़काने की कोशिश कर रहे हैं। यह निकृष्ट किस्म का क्षेत्रवाद है। इससे विधि के शासन का निरादर तो होता ही है, क्षेत्रीय संकीर्णता को भी बल मिलता है। यह शर्मनाक है कि राजीव गांधी के हत्यारों को तमिलवाद का प्रतीक बनाने की कोशिश हो रही है। इसका हर स्तर पर विरोध किया जाना चाहिए। हालांकि मुख्यमंत्री जयललिता ने दो टूक कहा है कि उनके पास राष्ट्रपति के उस आदेश को बदलने की कोई शक्ति नहीं है जिसके तहत राजीव गांधी के हत्यारों-मुरुगन, पेरारिवलन और संतन की दया याचिकाएं खारिज कर दी गई हैं, लेकिन यह शुभ संकेत नहीं कि राज्य सरकार का सहयोगी दल डीएमडीके भी करुणानिधि की तरह भाषा बोल रहा है। एक अन्य दल पीएमके भी यह प्रचारित करने में लगा हुआ है कि अगर मुख्यमंत्री में इच्छाशक्ति है तो तीन लोगों की जान बचाई जा सकती है। यह और कुछ नहीं बेहद खतरनाक किस्म की देशविरोधी राजनीति है। यह राजनीति का निम्नतम स्तर है कि अब दुर्दात हत्यारों का बचाव किया जा रहा है। इस तरह की राजनीति यही बताती है कि राजनीतिक दलों को न तो राष्ट्रीय हितों की परवाह है और न ही संवैधानिक मूल्यों और मान्यताओं की। यह चिंताजनक है कि फांसी की सजा पाए हत्यारों का बचाव अब क्षेत्र और मजहब के आधार पर किया जा रहा है। यदि इस तरह की राजनीति को तनिक भी महत्व दिया जाएगा तो किसी भी अपराधी को फांसी देना संभव नहीं होगा। इस संदर्भ में इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि कुछ समय पहले पंजाब के आतंकवादी को फांसी की सजा दिए जाने का विरोध उसके पंजाबी होने के आधार पर किया गया। इसकी पहल कुछ राजनीतिक और गैर-राजनीतिक संगठनों के साथ-साथ खुद राज्य सरकार ने भी की। इसके पहले संसद पर हमले के दोषी पाए गए कश्मीर के आतंकी अफजल को फांसी की सजा न देने की दलील इस आधार पर दी गई कि ऐसा करने से राज्य के हालात खराब हो सकते हैं। यह दलील किसी और ने नहीं, कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता की ओर से दी गई और फिर धीरे-धीरे अन्य अनेक राजनीतिक दल भी इसी राह पर चल पड़े। जब राष्ट्रीय हितों की दुहाई देने और देश को दिशा देने वाले राजनीतिक दल इस तरह की क्षुद्रता दिखाते हैं तो वह एक तरह से समाज को भी संकीर्णता का पाठ पढ़ाने का काम करते हैं। फांसी की सजा पाए अपराधियों के मामले में यह ओछी राजनीति तत्काल प्रभाव से बंद होनी चाहिए। नि:संदेह ऐसा तब होगा जब केंद्र सरकार फांसी की सजा पाए अपराधियों के मामले में अपने ढुलमुल रवैये का परित्याग करेगी। राजीव गांधी के हत्यारों को फांसी की सजा का मामला और तूल पकड़े, इससे पहले केंद्र सरकार को हस्तक्षेप करना चाहिए।
साभार:-दैनिक जागरण
http://in.jagran.yahoo.com/epaper/article/index.php?page=article&choice=print_article&location=49&category=&articleid=111719873571137048

No comments: