Friday, September 2, 2011

खेल संघों की मनमानी

केंद्रीय खेल मंत्री अजय माकन की यह दलील बिलकुल सही है कि क्रिकेट संघ और विशेष रूप से भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की जनता के प्रति जवाबदेही बनती है। यह दयनीय है कि राष्ट्रीय खेल विकास विधेयक का विरोध इस कुतर्क के जरिये किया जा रहा है कि क्रिकेट संगठनों को सरकार से पैसा नहीं मिलता इसलिए वे सूचना अधिकार के दायरे में आने को बाध्य नहीं। तथ्य यह है कि वे सरकारी सुविधाओं का लाभ उठाने के साथ आयकर में छूट भी पाते हैं। क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड और अन्य खेल संघों ने जिस तरह खेल विकास विधेयक का विरोध किया उससे उनके इरादों पर संदेह होना स्वाभाविक है। सरकार से पैसा पाने वाले खेल संघों को इस विधेयक का विरोध करने का अधिकार इसलिए नहीं, क्योंकि एक तो वे सरकारी अनुदान पाते हैं और दूसरे हर स्तर पर मनमानी भी करते हैं। यदि खेल संघ और उनके पदाधिकारी अपने दायित्वों का निर्वाह सही तरह कर रहे होते तो अंतरराष्ट्रीय खेल जगत में भारत इतना पीछे नहीं होता। यदि केंद्रीय खेल मंत्री यह चाहते हैं कि खेल संघों के पदाधिकारी आजीवन अपने पदों पर न बने रहें तो इसमें कुछ भी अनुचित नहीं। इस मामले में अंतरराष्ट्रीय नियम-कानूनों की आड़ में छिपने का कोई मतलब नहीं। यह अच्छा नहीं हुआ कि कैबिनेट में खेल विकास विधेयक पर चर्चा शरद पवार, सीपी जोशी, फारूक अब्दुल्ला सरीखे मंत्रियों की मौजूदगी में हुई। अच्छा होता कि प्रधानमंत्री यह सुनिश्चित करते कि इस विधेयक पर चर्चा के दौरान खेल संघों से जुड़े मंत्री अनुपस्थित रहते। अगर खेल विधेयक को लेकर मंत्रियों का कोई समूह गठित होता है तो उसमें खेल संघों से जुड़े मंत्रियों के लिए जगह नहीं होनी चाहिए, अन्यथा नीर-क्षीर ढंग से फैसला होने के बजाय हितों का टकराव होगा। खेल मंत्री को क्रिकेट संगठनों एवं अन्य खेल संघों के काम-काज को पारदर्शिता के दायरे में लाने के साथ यह भी सुनिश्चित करना होगा कि इन संगठनों की स्वायत्तता बनी रहे। खेल विकास विधेयक के जरिये खेल संघों पर सरकार का नियंत्रण नहीं होना चाहिए, क्योंकि सभी जानते हैं कि सरकारी हस्तक्षेप के कारण ही भारतीय हाकी दुर्दशा से ग्रस्त है। दरअसल इस मामले में बीच का रास्ता निकालने की जरूरत है, जिससे खेल संघ सरकारी हस्तक्षेप से बचे रहें और साथ ही स्वायत्तता के नाम पर मनमानी भी न करने पाएं। उन्हें अपनी ही चलाने की छूट नहीं दी जा सकती, क्योंकि यह जग जाहिर है कि राष्ट्रमंडल खेलों में घपलेबाजी खेल संघों की मनमानी का ही दुष्परिणाम है। अपनी ही चलाने की छूट क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड एवं अन्य क्रिकेट संगठनों को भी नहीं मिलनी चाहिए। नि:संदेह क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड इस खेल को नई ऊंचाइयों पर ले गया है, लेकिन यह भी एक तथ्य है कि उसके आय-व्यय के तौर-तरीकों के बारे में जनता को कुछ पता नहीं। जब क्रिकेट प्रशासकों की मनमानी से टीम खराब प्रदर्शन करती है तो देश का नाम भी खराब होता है और इस नाते आम जनता को उनसे सवाल-जवाब करने का अधिकार है। सभी खेल संघों का नियमन इसलिए समय की मांग है, क्योंकि खेलों के प्रति युवाओं का रुझान बढ़ाने की जरूरत है। इससे बेहतर और कुछ नहीं हो सकता कि युवाओं की ऊर्जा खेलों में खपे। इससे न केवल युवाशक्ति को दिशा मिलेगी, बल्कि देश का बेहतर निर्माण भी होगा।
साभार:-दैनिक जागरण
http://in.jagran.yahoo.com/epaper/article/index.php?page=article&choice=print_article&location=49&category=&articleid=111720093369014328

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