Thursday, January 13, 2011

देशद्रोह को संरक्षण

कांग्रेस पर वोट की राजनीति के लिए राष्ट्रद्रोही तत्वों को प्रश्रय देने का आरोप लगा रहे हैं राजनाथ सिंह सूर्य

क्या आप यह विश्वास करेंगे कि मुंबई में 26/11 के हमले की साजिश आरएसएस और इजराइल की गुप्तचर संस्था मोसाद ने रची थी और इसमें शामिल पाकिस्तानियों को गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुंबई के होटलों में ठहराया था। इस तथ्य का रहस्योद्घाटन उर्दू की एक पुस्तक आरएसएस की साजिश 26/11 में किया गया है, जिसका लोकार्पण दिल्ली और मुंबई में कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने किया है। संभवत: इसका अगला लोकार्पण इस्लामाबाद में हो और वहां भी दिग्विजय सिंह ही इस रस्म को अदा करें। इस पुस्तक में यह भी रहस्योद्घाटन किया गया है कि विश्व हिंदू परिषद के महासचिव प्रवीण तोगडि़या के पैसे से आरएसएस कार्यकारिणी के सदस्य इंद्रेश कुमार को मारने के लिए हथियार खरीदे गए थे। पुस्तक में कुछ और भी रहस्योद्घाटन किए गए हैं, जैसे अमेरिका की शह पर सऊदी अरब के मौलाना बेदी ने 26/11 के जिहादियों को इकट्ठा किया था और नरेंद्र मोदी ने हमलावरों को मुंबई पहुंचाने और होटलों में रुकवाने में मदद की थी। यह पुस्तक एक उर्दू समाचार पत्र के संपादक ने संपादित की है। इसमें कुछ और भी सनसनीखेज रहस्योद्घाटन हैं जैसे कि इंडियन मुजाहिद्दीन और इस्लामिक सिक्योरिटी फोर्स जैसे आतंकवादी संगठनों को तैयार कर संघ और विश्व हिंदू परिषद ने मुसलमानों को बदनाम करने की साजिश रची है। असम में बम धमाकों के पीछे इंडियम मुजाहिद्दीन का हाथ नहीं था क्योंकि वह एक काल्पनिक संगठन है। बजरंग दल एक संदिग्ध संगठन है और इंडियन मुजाहिद्दीन बजरंग दल का ही कूट नाम है। यह भी कहा गया है कि सीबीआइ ने हिंदू आतंकवाद पर परदा डालने की कोशिश की है और बाटला हाउस मुठभेड़ फर्जी थी। आरएसएस नौजवानों और औरतों को त्रिशूल बांट रहा है। बजरंग दल लोगों को बम बनाने और धमाके करने की ट्रेनिंग दे रहा है तथा विश्व हिंदू परिषद ने महाराष्ट्र की कई मस्जिदों में धमाके किए हैं। पुस्तक में एक और बड़ा रहस्योद्घाटन यह भी किया गया है कि आरएसएस के नेता इंद्रेश कुमार ने पाकिस्तान की गुप्तचर इकाई आइएसआइ से तीन करोड़ रुपये लिए थे। इस पुस्तक के रचियता और ऐसे ही अनेक कुप्रचारकों के लिए ऐसी छूट शायद ही किसी देश में हो, जैसी भारत में है। इस पुस्तक को पढ़ने से तो ऐसा लगता है कि मुंबई पर 26 नवंबर, 2008 को हुए आतंकी हमले को अंजाम देने वाले पाकिस्तानी आतंकी आरएसएस की साजिश का हिस्सा थे। आश्चर्य की बात है कि पुस्तक के लेखक को जिन तथ्यों की जानकारी बंद कमरों में हो गई, उनका कोई सुराग खुफिया एजेंसियों, पुलिस एवं गृह मंत्रालय को नहीं लग पाया और मीडिया भी उनसे पूरी तरह अनभिज्ञ रहा। यह जानकारी एक संपादक को कहां से प्राप्त हुई? इस पुस्तक के प्रकाशन से यदि कोई सबसे अधिक प्रसन्न होगा तो वह पाकिस्तान है क्योंकि उसने जो तरह-तरह के हस्तक खड़े किए हैं, उनमें से कुछ की पैठ कांग्रेस में भी है। कांग्रेस के प्रवक्ता के दिलोदिमाग पर ये कुत्सित विचार इस कदर छा गए हैं कि वह सारे सरकारी सबूतों को नकारते हुए देश के लिए सबसे बड़ा खतरा हिंदू आतंकवादियों को बताते फिर रहे हैं। यही नहीं पूरी पार्टी और इसके युवराज भी इसी लाइन पर चल रहे हैं। कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने जब यह दिशा पकड़ी और हेमंत करकरे की हत्या के संदर्भ में बयान जारी किए तब लगा था कि यह उनकी व्यक्तिगत सनक है, लेकिन अब तो पूरी पार्टी इसी सनक के सहारे जीवित रहना चाहती है। जिस एक पुस्तक में अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की छवि को खंडित किया गया, समाज में वैमनस्य, अविश्वास और भ्रम फैलाने की साजिश की गई तथा सेना, जांच एजेंसियों, पुलिस और न्यायालय की वैधानिकता पर गंभीर सवाल खड़ा किया है, उसका विमोचन करके दिग्विजय सिंह क्या साबित करना चाहते हैं। यह पुस्तक देश के न्यायालय, पुलिस, खुफिया तंत्र, नागरिक समाज और बुद्धिजीवियों को कठघरे में खड़ा करती है। लगता है कि अनर्गल प्रचार और दुष्प्रचार से शत्रु देशों को मदद पहुंचाने और मित्र देशों से संबंध बिगाड़ने वाले क्रियाकलाप देशभक्ति के पर्याय बन गए हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो कांग्रेस आज भी तिब्बत की आजादी के लिए सम्मेलन करती मिलती और चीन के हमले के प्रति नित्य सचेत करना नहीं भूलती। इसमें घरवापसी के बाद कोई व्यक्ति यह कहने का साहस कैसे कर सकता है कि पता नहीं कश्मीर भारत का हिस्सा है भी या नहीं या फिर कश्मीर की स्वतंत्रता के लिए कोई चंडीगढ़, दिल्ली या कोलकाता में प्लेटफार्म कैसे पाता? कांग्रेस जिस वोट के लालच में ऐसी कुत्सित मानसिकता को प्रश्रय दे रही है, वह दिग्विजय सिंह के इस संशोधित कथन मात्र से अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त नहीं हो सकती कि 26/11 के हमले को पाकिस्तानियों ने ही अंजाम दिया था। यदि उनका और कांग्रेस का यह मानना है तो फिर ऐसी पुस्तक का एक नहीं, दो बार लोकर्पण का दायित्व उन्होंने क्यों निभाया, जिसमें अनर्गल प्रलाप के अलावा और कुछ नहीं है। या फिर कांग्रेस ने मात्र यह कहकर कि यह दिग्विजय सिंह का व्यक्तिगत मामला है अपना पिंड क्यों छुड़ाना चाहा। घिनौनी और निराधार अभिव्यक्तियों वाली पुस्तक से संबद्ध होकर कांग्रेस ने देश के स्वाभिमान पर चोट की है। यह हमारी चिंता का विषय नहीं है कि कांग्रेस को इसका दुष्परिणाम भुगतना पड़ेगा। चिंता इस बात की है कि वोट की राजनीति के लिए देशद्रोह जैसी हरकतों को खुलेआम संरक्षण मिलने लगा है।
(लेखक राज्यसभा के पूर्व सदस्य हैं)
साभार:-दैनिक जागरण

1 comment:

नीरज द्विवेदी said...

Hamari Sarkar hi deshdrohi hai ... aur un sab par deshdroh ka mukadama chalna chahiye. Humari sarkar pakdegaye atankvadiyon ki suraksha me abhi tak kai crore dhan kharch kar chuki hai, unhe abhi tak fansi q nahi mili ? aur wo dhan deshvasiyon ka wo dhan hai jo kar ke room me hum sarkar ko desh ke vikas ke liye dete hain jo sarkar ke numainde apne aur en atankvadiyon ke vikas me kharch kar rahi hai.