ऊर्जा आत्मजागरण मनुष्य का निद्रारूपी अविद्या को छोड़कर विद्या से चेतन हो भली-भांति ज्ञान प्राप्त करना आत्मजागरण है। ज्ञान को प्राप्त करने के लिए सबसे आवश्यक तत्व बोध है। बोध की प्राप्ति होने पर इसके प्रकाश में सब यथावत दिखाई देता है। ज्ञानपिपासु ज्ञान और विज्ञान की प्राप्ति को जीवन का लक्ष्य बनाकर इसकी प्राप्ति की ओर सदा उन्मुख रहते हैं। आत्मा को जगाना है तो उसके लिए न तो बहुत पढ़ने की आवश्यकता है, न बहुत सुनने की। इसका जागरण तो केवल आत्म संबोधन से ही संभव है। इसके बाद ज्ञान और विज्ञान का सारा खजाना स्वत: ही हमें प्राप्त हो जाता है। जब तक मनुष्य की आत्मा सो रही है तब तक उसका ज्ञान, साधना, धर्म, शास्त्र सब कुछ सोता रहता है। आत्मजागरण प्राप्त हो जाने पर हमारे अंदर मान-अपमान, हानि-लाभ, जय-पराजय, सफलता-विफलता और संयोग-वियोग, प्रत्येक प्रकार के द्वंद्वों का सामना करते हुए आत्मविकास की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा मिलती है। यह मानव शरीर हमें एक इष्ट की पूर्ति के लिए मिला है। मानव शरीर इसका साधन मात्र हैं। वह इष्ट है ब्रंा की प्राप्ति। आज हम अपने परम इष्ट को भूलकर केवल साधना देह की संतुष्टि पर ही लगे रहते हैं। आत्मजागरण के बिना समस्त कर्म व्यर्थ हैं। आत्मजागरण के द्वारा आत्मोदय होने पर इसके प्रकाश से मनुष्य श्रेय के मार्ग पर आगे बढ़ जाता है अर्थात् मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर होता है। यह पवित्र भावनाओं को विकसित करके मन, बुद्धि और इंद्रियों को प्रशस्त करता हुआ श्रेष्ठ मार्ग की ओर चलने के लिए प्रेरित करता है, जिससे कर्म की परिसमाप्ति और ब्रंा की प्राप्ति होती है। हमारी चेतना मूलरूप से परमात्मा से संबद्ध है, जिससे हमारे अंदर दैवीय गुणों का समावेश होता रहता है। भौतिकता के चक्कर में हम आध्यात्मिकता की उपेक्षा करते रहते हैं, जिसके दुष्परिणाम हमारे सामने आते हैं। कटुता, स्वार्थपरता, वैरभाव आदि दुष्प्रवृत्तियां जाने अनजाने हमारे आचरण में आती रहती हैं, जो हमारे व्यक्तित्व को धूमिल करती हैं। आत्मजागरण के द्वारा हमें इनसे बचना है।
कृष्णकांत वैदिक
साभार:-दैनिक जागरण
Wednesday, January 12, 2011
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