Wednesday, January 12, 2011

विवेकानंद का विलक्षण दर्शन

स्वामी विवेकानंद की जयंती पर अमेरिकी समाज को राह दिखाने में उनके योगदान का स्मरण कर रहे हैं जगमोहन
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने नवंबर में अपनी भारत यात्रा के दौरान कई ऐसी बातें कहीं जो भारतीयों को सुनने में अच्छी लगीं। उन्होंने बड़े ही अच्छे शब्दों में भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठता का उल्लेख किया, विशेषकर शांति और बहुलवाद पर उसके अटूट विश्वास का। मानवता और वैश्विक बंधुत्व के दो महान प्रचारकों-गांधी और विवेकानंद का भी विशेष उल्लेख हुआ। ओबामा ने अमेरिका की नैतिक कल्पनाशक्ति के विस्तार में भारतीय योगदान को भी रेखांकित किया। अमेरिका के नैतिक भाव के इस विस्तार में स्वामी विवेकानंद ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। हमारे समय के महान अमेरिकी शिक्षाविद् एलेनर स्टार्क के शब्दों में अमेरिका में पूरब की आवाज हावी हुई। इसने कुछ ही वर्षो के भीतर यहां के लोगों में नवजागरण के बीज बो दिए। शताब्दी में बदलाव के साथ पूरे देश में एक खामोश क्रांति का सूत्रपात हो गया। अमेरिकी लोगों को स्वामी विवेकानंद ने ऐसे विवेक और शक्ति के साथ अपना संदेश दिया जिससे उस समय उनको सुनने वाले हर व्यक्ति ने अपने जीवन को बदला हुआ पाया। उन सभी के मन-मस्तिष्क मुक्त हो गए। विवेकानंद ने अमेरिका की अच्छी-खासी आबादी पर अपना गहरा प्रभाव डाला। उन्होंने लोगों को नई प्रेरणा दी और नैतिक विभ्रम से बाहर निकलने का एक स्पष्ट मार्गं बताया। 19वीं शताब्दी के अंत तक अमेरिका एक विशाल आर्थिक महाशक्ति बन चुका था। इसके समाज अभूतपूर्व समृद्धि-संपन्नता अर्जित कर रहे थे। विज्ञान और तकनीक के कदम बहुत तेजी से आगे बढ़ रहे थे। लोगों के स्वास्थ्य के क्षेत्र में उसने नाटकीय सुधार किया था। नगर बड़े-बड़े महानगरों में तब्दील हो रहे थे, जो उसकी बढ़ती संपन्नता और ऐश्वर्य के साथ-साथ अत्यंत कुशल प्रबंधन के प्रतीक थे। उद्योग और उद्यम में विकास की रफ्तार ने पूरी दुनिया को चमत्कृत कर दिया। कम शब्दों में कहा जाए तो अमेरिका में भौतिक उन्नति विलक्षण, शानदार और दर्शनीय थी। उसी दौर में अमेरिका का एक संवेदनशील वर्गं यह महसूस कर रहा था कि उनके जीवन से कुछ न कुछ रोज ही खोता जा रहा है। उसने खुद को एक रोबो की तरह काम करते हुए पाया-यानी जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में गाड़ी लाल और हरी बत्ती देखकर रुकती-चलती थी। निजी जीवन की स्थिरता और शांति में खतरा लगातार बढ़ता जा रहा था। आम अमेरिकी समाज एक नई तरह की अशांति का अनुभव कर रहा था। यह अशांति लोगों के घरों, परिवार में बिखराव से उपजी थी। मादक पदार्थो का इस्तेमाल बढ़ने लगा। हथियारों के प्रति आकर्षण बढ़ा। धन और भौतिक सामग्री की कभी न खत्म होने वाली भूख ने अमेरिकी समाज में एक तरह की तबाही ही ला दी। आर्थिक और तकनीकी प्रगति एक ओर आसमान छू रही थी तो दूसरी ओर सामाजिक और नैतिक पतन नए निम्न तलाश रहा था। इस दौरान आय में असाधारण विषमताओं ने हालात और जटिल बना दिए। संपन्न अमेरिका के भीतर एक नया अमेरिका आकार लेने लगा। यह नया अमेरिका था-वंचित और पिछड़े लोगों का समाज। इन विषमताओं, विडंबनाओं और जीवन की जटिलताओं के बीच स्वामी विवेकानंद परिदृश्य में उभरे। अपनी दो यात्राओं (पहली 1893 से 1896 और दूसरी 1899-1900) में विवेकानंद ने अमेरिकी मनोभावों को इस तरह छू लिया जैसा किसी विदेशी दार्शनिक और गुरु ने अब तक नहीं किया था। उनका भाव, शैली, आशय, सभी कुछ विलक्षण था। वह विश्वविद्यालयों में बोले, चर्च, शहर के मशहूर केंद्रों और कुल मिलाकर हर तरह की सार्वजनिक और निजी बैठकों में उनकी वाणी ने अपना असर दिखाया। शिकागो में सभी धर्मो की विश्व संसद में उनके संबोधन के एक-एक शब्द ने पूरी दुनिया में उनकी ख्याति फैला दी। उन्होंने सामाजिक और नैतिक जीवन के लगभग सभी पहलुओं में अपने विशिष्ट विचार विशिष्ट शैली में दुनिया के सामने रखे, लेकिन वह अपने श्रोताओं को कभी यह बताना नहीं भूले कि यदि पूरी दुनिया में हमें खुशहाल, सौहार्द्रपूर्ण और संतुलित समाजों की रचना करनी है तो इस विश्व के सभी लोगों के लिए व्यावहारिक वेदांत को जीवन का निर्देशक तत्व बनाना होगा। विवेकानंद ने यह स्पष्ट कर दिया था कि व्यावहारिक वेदांत का उनका विचार धार्मिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक है। यह जीवन का नया सिद्धांत है, जो इस विश्वास पर आधारित है कि जीवन और प्रकृति की सभी चीजों में एक ही दैवीय चेतना भरी है और सभी विश्वास इस चेतना के साथ आपस में जुड़े हुए हैं। विवेकानंद यह बताते हुए कभी नहीं थके कि कभी किसी दूसरे को चोट मत पहुंचाओ, क्योंकि यह पूरा जगत एक है और किसी को चोट पहुंचाने का अर्थ है कि आप खुद को क्षति पहुंचा रहे हैं। विवेकानंद ने कहा कि उद्यम और जीवन के ऊंचे मानकों की तलाश की अमेरिकी भावना में कोई बुराई नहीं है, लेकिन सभी गतिविधियां अद्वैत संस्कृति के दायरे के भीतर होनी चाहिए और इस प्रक्रिया में एकीकृत अस्तित्व के किसी अन्य भाग पर किसी तरह का दुष्प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। उन्होंने अंधाधुंध तरीके से धन अर्जित करने की प्रवृत्ति की निंदा की। उस समय अमेरिकी लोग अपने विश्वास और आधुनिक विज्ञान के रहस्योद्घाटनों के विरोधाभासों को लेकर दुविधा का सामना कर रहे थे। यहां भी विवेकानंद ने उन्हें राह दिखाई। उन्होंने कहा कि लौकिक ऊर्जा उस व्यापक ऊर्जा से किसी भी तरह भिन्न नहीं है जिस पर वैज्ञानिक विश्वास करते हैं। उन्होंने लौकिक ऊर्जा के सभी रूपों-पदार्थ, विचार, बल, बुद्धि-विवेक को ईश्वरीय अंश मानते हुए उसी ऊर्जा का रूप बताया जो विज्ञान का आधार है।
(लेखक पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं)
साभार:-दैनिक जागरण

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