अमेरिका-पाकिस्तान में पक रही खिचड़ी से भारत की सुरक्षा पर खतरा मंडराता देख रहे हैं अरुण नेहरू
फिलहाल, सुरक्षा हमारी चिंता का विषय बना हुआ है। बाहरी खतरे और माओवादियों व अन्य उग्रवादी तत्वों द्वारा देश में मचाए जा रहे उत्पात को देखते हुए हमें भविष्य के लिए अपने लक्ष्य बिल्कुल स्पष्ट कर लेने चाहिए। मुंबई में आतंकी हमले पर अमेरिका का रवैया और आतंकवादी डेविड कोलमैन हेडली से पूछताछ की भारत की मांग पर बार-बार बयान बदलने से भ्रम फैल रहा है। हेडली डबल एजेंट था, जो अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के लिए काम कर रहा था। मेरे ख्याल से ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि भविष्य में अफगानिस्तान से विदाई में अमेरिका पाकिस्तान से सहयोग की अपेक्षा कर रहा है। इस संबंध में बातचीत पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी के नेतृत्व में होगी, किंतु इसमें जनरल एपी कियानी और आईएसआई प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल शुजा पाशा भी निर्णायक भूमिका निभाएंगे। इन परिस्थितियों से हमें बड़ी समझ-बूझ से निपटना होगा। पिछले एक साल में पाकिस्तान की निचली अदालतों में मुंबई हमलों के सूत्रधारों को सजा दिलाने के संबंध में खास प्रगति नहीं देखी गई है। आतंकवाद पर हाय-तौबा मचाने वाली अमेरिकी सरकार पाकिस्तान को अरबों डालर की सहायता राशि देने के बावजूद अपेक्षित सहयोग प्राप्त नहीं कर सकी है। इस राशि में आर्थिक मदद के साथ-साथ तालिबान से लड़ने के लिए हथियार और अन्य सैन्य साजोसामान भी शामिल है। पाकिस्तान ने बड़ी कुशलता से दोहरा खेल खेला है। पाकिस्तानी सेना और आईएसआई ने खंडित जनादेश का पूरा फायदा उठाया है। इस बातचीत के नतीजे से स्पष्ट संकेत मिल जाएंगे कि आतंकवाद से युद्ध समेत अन्य बहुत से मुद्दों पर अमेरिकी प्रशासन का रवैया क्या रहता है। जमीनी सच्चाई यह है कि अमेरिका और उसके सहयोगी देश इराक और अफगानिस्तान युद्ध में जबरदस्त दबाव में हैं। रोजाना आत्मघाती धमाकों और इस कारण बड़ी संख्या में अमेरिकी सैनिकों की मौत से वहां जनमत सरकार के खिलाफ है। इसके अलावा राष्ट्रपति बराक ओबामा की मध्यपूर्व नीति पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। अमेरिकी प्रशासन का 11 सितंबर को न्यूयार्क पर हुए आतंकी हमले और 26 नवंबर को मुंबई हमले पर दोहरे मानदंड अपनाना दुर्भाग्यपूर्ण है। डेविड हेडली अमेरिकी नागरिक है और अमेरिका व उसके बीच सौदेबाजी से मुंबई में नरसंहार के आरोपों से उसे बरी कैसे किया जा सकता है? उसका भारत में प्रत्यार्पण होना ही चाहिए। क्या अमेरिका से आतंकी गतिविधियां चलाने वाले आतंकवादियों पर अलग नियम लागू होते हैं। भारत में जनमत पाकिस्तानी सेना व आईएसआई का तुष्टिकरण स्वीकार नहीं कर सकता। पिछले तमाम अवसरों पर पाकिस्तान ने अमेरिकी हथियारों का भारत के खिलाफ इस्तेमाल किया है। बराक ओबामा एक प्रभावशाली वक्ता हैं और सुहाने वाली बातें करते आए हैं। उन्हें शांति के नोबल पुरस्कार से नवाजा गया है। किंतु पाकिस्तान को आपूर्ति किए गए हथियारों के संबंध में क्या उनकी कथनी करनी से मेल खाती है? गलत कारणों से मायावती और बसपा सुर्खियों में छाए हुए हैं। मुलायम सिंह यादव को लोहिया की मूर्ति पर माल्यार्पण करने से रोकने का प्रयास करना एक शर्मनाक घटना है। इस तरह की हरकतें कांग्रेस का काम आसान कर रही हैं। उत्तर प्रदेश में चुनाव करीब आ रहे हैं। जनादेश किसी भी किस्म की गुंडागर्दी का लाइसेंस नहीं है। मायावती भी इस नियम की अपवाद नहीं हैं। इसी तरह महिला आरक्षण का विरोध करते हुए मुलायम सिंह यादव की अभद्र टिप्पणियां बेहद दुर्भाग्यपूर्ण हैं। स्पष्ट तौर पर अब उन्हें पार्टी में अन्य लोगों के लिए स्थान खाली कर देना चाहिए। किंतु इसमें वंश परंपरा आड़े आ सकती है क्योंकि उनके पुत्र अखिलेश सिंह में परिपक्वता नजर नहीं आती। समाजवादी पार्टी अपने वोट आधार का अच्छा-खासा हिस्सा गंवा चुकी है, जो कांग्रेस और बसपा ने झटक लिया है। अमर सिंह के जाने से इसे और झटका लगा है। केंद्रीय नेतृत्व के स्तर पर भाजपा स्थिर होती दिखती है किंतु उत्तर प्रदेश में वह अपना आधार नहीं बना पा रही है। यहां मुख्य मुकाबला कांग्रेस और बसपा में ही रहेगा। दक्षिण भी उत्तर के साथ कदमताल कर रहा है। द्रमुक में एमके अलगिरी और एमके स्टालिन के बीच संघर्ष चल रहा है। यह भी वंश राजनीति का एक हिस्सा है। वहां उत्तराधिकारी के बारे में स्पष्ट राय नहीं बन पा रही है। पार्टी के सुप्रीमो कमजोर पड़ गए हैं। तमिलनाडु में दो पत्िनयों, उनके बेटों, बेटियों, भतीजों-भतीजियों के बीच भीषण संघर्ष छिड़ गया है। इस लड़ाई को बंद करने में कांग्रेस कोई दखल नहीं दे रही है। वह तो किनारे बैठकर भविष्य के विकल्पों पर विचार कर रही है। पीएमके किसी भी पक्ष की विश्वासपात्र नहीं है। डीएमडीके विजेता गठबंधन के साथ जुड़ सकती है। अन्नाद्रमुक सुप्रीमो जयललिता आराम से तमाशा देख रही हैं। सत्ता संघर्ष का ज्वार द्रमुक को खतरे में डाल सकता है। शंकालु द्रमुक तमिलनाडु में कांग्रेस को अपना आधार मजबूत करते हुए देखेगा। वह राहुल गांधी के प्रयासों की उपेक्षा नहीं कर सकती। द्रमुक परिवार के बहुत से सदस्य मुख्यमंत्री के। करुणानिधि के जीवनकाल में ही उत्तराधिकारी का मसला हल कर लेना चाहते हैं। अगर स्टालिन को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया जाता है तो अगले कुछ माह में वहां के हालात का जायजा लगा पाना कठिन होगा। ऐसा होने पर तमिलनाडु में उथल-पुथल का दौर शुरू हो सकता है, जो द्रमुक के भीतर तथा गठबंधन सदस्यों के बीच होगा। (लेखक पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं)
साभार :- दैनिक जागरण
Wednesday, March 31, 2010
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