Thursday, March 25, 2010

हेडली से अमेरिकी प्रशासन का समझौता

पाकिस्तान मूल के आतंकी दाऊद गिलानी उर्फ डेविड कोलमेन हेडली से अमेरिकी प्रशासन का समझौता भारत के लिए एक आघात तो है ही, आतंकवाद के मामले में अमेरिका के दोहरे आचरणका एक और सबूत भी है। एक बार फिर अमेरिका ने वही किया जो सिर्फ उसके हितों की पूर्ति करने वाला था। हेडली से समझौता कर अमेरिका ने इस आशंका की पुष्टि कर दी कि यह आतंकी लश्कर का गुर्गा होने के साथ-साथ उसकी खुफिया एजेंसी एफबीआई का भेदिया भी था। यह ठीक है कि अमेरिका इस तथ्य पर पर्दा डालना चाहेगा, लेकिन यह निंदनीय है कि इस कोशिश में उसने एक ऐसे आतंकी से समझौता किया जो डेढ़ सौ से अधिक लोगों की हत्या के लिए जिम्मेदार है। इस पर गौर किया जाना चाहिए कि अमेरिकी प्रशासन और हेडली के बीच हुए समझौते की एक शर्त यह है कि उसे भारत और डेनमार्क प्रत्यर्पित नहीं किया जा सकता। चूंकि हेडली डेनमार्क के एक अखबार के दफ्तर में हमला करने की साजिश को अंजाम देने के पहले ही पकड़ा गया इसलिए यह देश शायद ही उससे पूछताछ करने का इच्छुक हो, लेकिन न्याय का तकाजा तो यह कहता है कि उसे भारत लाया जाना चाहिए। कम से कम अब तो हमारे नीति-नियंताओं को यह समझ आ जाना चाहिए कि अमेरिका ने अपने लिए अलग और शेष दुनिया के लिए अलग नियम बना रखे हैं। यह बेहद दयनीय है कि भारत अमेरिका के इस आश्वासन पर राहत महसूस कर रहा है कि उसे हेडली से पूछताछ करने का अवसर दिया जाएगा। इसमें संदेह है कि ऐसा हो पाएगा। हेडली से पूछताछ करने में अमेरिका इतने अड़ंगे लगा सकता है कि भारतीय अधिकारी उससे पूछताछ न करना ही बेहतर समझें। अमेरिका ने आतंकी हेडली के हितों की रक्षा के लिए जो तत्परता दिखाई उससे उसके और पाकिस्तान के आचरण में एक समानता सी नजर आने लगी है। आखिर अब अमेरिका किस मुंह से यह कहेगा कि कि मुंबई हमले के दोषियों को दंड मिलना चाहिए, क्योंकि एक दोषी को बचाने का काम तो वह खुद कर रहा है? क्या भारत सरकार अमेरिका से यह सवाल करेगी कि उसे हेडली की जान की इतनी परवाह क्यों है? यह शुभ संकेत है कि गृहमंत्री चिदंबरम कह रहे हैं कि भारत हेडली के प्रत्यर्पण की कोशिश जारी रखेगा, लेकिन यह ठीक नहीं कि विदेश मंत्री एसएम कृष्णा अमेरिकी सहयोग से संतुष्ट हैं। आखिर यह क्या बात हुई? विदेश मंत्री अमेरिका की तरफदारी क्यों कर रहे हैं- और वह भी तब जब अमेरिका आतंकवाद के मामले में दोहरे मानदंड दिखा रहा है? ऐसा लगता है कि हमारे नीति-नियंता यह अहसास नहीं कर पा रहे हैं कि अमेरिका ने अपने संकीर्ण स्वार्थो को पूरा करने के फेर में भारत को धोखा देने का काम किया है। शर्मनाक केवल यह नहीं है कि अमेरिका ने एक कुख्यात आतंकी से समझौता कर लिया, बल्कि यह भी है कि उसकी ओर से हेडली को इस बात का प्रमाण पत्र देने की भी कोशिश की जा रही है कि उसने ईमानदारी से अपने गुनाह कबूल किए हैं और वह सरकार के साथ सहयोग करने के लिए सहमत है। हेडली की यह ईमानदारी ओबामा प्रशासन को ही मुबारक हो। इसका कोई औचित्य नहीं कि भारत हेडली के मामले में अमेरिका के रवैये का प्रतिरोध न करे, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसी संभावना नहीं है कि भारतीय नेतृत्व अमेरिका से अपनी नाराजगी जताएगा।
सम्पादकीय दैनिक जागरण

No comments: