Tuesday, November 17, 2009

लूट के लोकतांत्रिक तरीके

मधु कोड़ा और ए. राजा के भ्रष्टाचार के मामलों पर केंद्र सरकार के रवैये को शर्मनाक मान रहे हैं राजीव सचान मधु कोड़ा दो हजार करोड़ रुपये कीकाली कमाई करने में सक्षम रहे तो इसके लिए उन्हें और उनके साथियों को केंद्रसरकार को खास तौर पर साधुवाद देना चाहिए, क्योंकि बगैर उसके सहयोग के वह 23माह में करीब 24 खदानों को पट्टे पर देने का काम मनमाने तरीके से नहीं करसकते थे। यह रहस्यमय है कि जब कोड़ा कोयला और लौह खदानों को पट्टे पर देने कीदनादन सिफारिश कर रहे थे तब केंद्र सरकार उन पर आंख मूंदकर मोहर क्यों लगारही थी? क्या इसलिए कि कोड़ा की काली कमाई का एक हिस्सा कांग्रेसजनों की जेबमें भी पहुंच रहा था? कांग्रेसजन ऐसे किसी आरोप से इनकार करेंगे, लेकिन यहमानने के पर्याप्त परिस्थितिजन्य कारण हैं कि निर्दलीय होते हुए भी कोड़ा 23महीने तक सिर्फ इसलिए सरकार चलाते रहे, क्योंकि उनकी काली कमाई से उन्हेंसमर्थन देने वाले राजनीतिक दल-कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल और झारखंडमुक्तिमोर्चा भी लाभान्वित हो रहे थे। कोड़ा ने एक बार कहा भी था कि पैसे काखेल नहीं होता तो वह एक दिन के लिए भी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठे रहसकते थे। स्पष्ट है कि कोड़ा की ओर से की गई लूट-खसोट के लिए अकेले वही दोषीनहीं हैं, लेकिन मौजूदा लोकतांत्रिक व्यवस्था में भारत की कोई भी सरकारीएजेंसी इसके सबूत नहीं जुटा सकती। यह भी समय बताएगा कि कोड़ा को उनके किए कीसजा मिल पाती है या नहीं, क्योंकि वह एक राजनेता हैं और अब तक का अनुभव यहीबताता है कि भारत में राजनेताओं के खिलाफ जांच-पड़ताल तो होती है और वेअदालतों के चक्कर भी काटते हैं, लेकिन उन्हें सजा नहीं मिलती। झारखंड मेंविधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। यदि कोड़ा अपने दो-तीन साथियों समेत जीतजाते हैं और त्रिशंकु सदन की स्थिति बनती है तो वह सरकार गठित करने वाले दलके लिए फिर से आदरणीय-प्रात: स्मरणीय बन सकते हैं। यदि झारखंड में किसी तरहकांग्रेस सरकार बनाने में सफल हो जाए और उसे मधु कोड़ा के भीतरी या बाहरीसमर्थन की जरूरत पड़े तो आयकर विभाग, केंद्रीय जांच ब्यूरो, प्रवर्तननिदेशालय आदि को सांप सूंघ सकता है। यकीन न हो तो केंद्र सरकार के उस रवैयेपर गौर करें जो उसने 60 हजार करोड़ रुपये का चूना लगाने वाले दूरसंचार मंत्रीए. राजा के प्रति अपना रखा है। इस पर खास तौर पर गौर करना चाहिए कि उन्हेंकोई और नहीं खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह क्लीनचिट देने की कोशिश कर रहेहैं। क्या इससे अधिक शर्मनाक और कुछ हो सकता है कि राजा का जो कृत्य स्वत:घोटाला होने के प्रमाण दे रहा है उसका बचाव खुद प्रधानमंत्री कर रहे हैं?माना कि कांग्रेस को अपने नेतृत्व वाली केंद्रीय सत्ता चलानी है और इसके लिएद्रमुक का सहयोग जरूरी है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं हो सकता कि देश जीतीमक्खी निगल ले। यद्यपि प्रधानमंत्री सीबीआई को बड़ी मछलियां पकड़ने की सलाहदे चुके हैं और भ्रष्टाचार को एक गंभीर समस्या बता चुके हैं, लेकिन कोई नहींजानता कि वह बिहार सरकार के उस विधेयक के प्रति गंभीर क्यों नहीं जो केंद्रसरकार की हरी झंडी का इंतजार कर रहा है और जिसमें भ्रष्ट सेवकों की संपत्तिजब्त करने का प्रावधान है? मधु कोड़ा और ए.राजा के कारनामे यह भी बताते हैंकि ठगी-गबन करने वालों अथवा खुले आम डाका डालने वालों को अब राजनीति मेंप्रवेश कर मंत्री-मुख्यमंत्री पद पाने की कोशिश करनी चाहिए। इसके बाद वह राजाजैसी हरकत भी कर सकते हैं और मधु कोड़ा जैसी भी। गठबंधन राजनीति के इस दौरमें वे इसके प्रति आश्वस्त रह सकते हैं कि उनके भ्रष्ट आचरण के बावजूद उन्हेंकोई न कोई समर्थन देने के लिए उठ खड़ा होगा। आश्चर्य नहीं कि ऐसा करने वालोंमें खुद प्रधानमंत्री भी हों। देश के नीति-नियंताओं को यह देखकर चुल्लू भरपानी की तलाश करनी चाहिए कि कोई दो हजार करोड़ के वारे-न्यारे कर रहा है औरकोई 60 हजार करोड़ के। एक ऐसे देश में जहां करोड़ों लोग महज 30-40 रुपयेप्रतिदिन पर गुजर-बसर करने के लिए विवश हैं वहां हजारों करोड़ की हेराफेरी एकझटके में हो रही है और सत्ता के शीर्ष केंद्र में एक पत्ता तक नहीं खड़कता।जिस लोकतांत्रिक व्यवस्था में ऐसा होता हो उसे धिक्कार, लेकिन जो शासक यह सबहोते हुए भी मौन धारण किए हों उन्हें धिक्कारने से कोई लाभ नहीं, क्योंकि वेया तो संवेदनहीन हो चुके हैं या फिर भ्रष्ट तत्वों के संरक्षक-समर्थक। सवालसिर्फ कोड़ा और राजा की कारगुजारियों का ही नहीं है, सत्ता के गलियारों मेंउनके जैसे लोगों का ही बोलबाला है। अब इसमें संदेह नहीं कि खोटे सिक्कों नेअच्छे सिक्कों को निष्प्रभावी बना दिया है। ए. राजा का बचाव प्रधानमंत्रीमनमोहन सिंह ही नहीं, कांग्रेस के अन्य अनेक नेता भी कर रहे हैं। वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी कह रहे हैं कि भ्रष्टाचार के आरोप का यह मतलब नहीं किभ्रष्टाचार हुआ है। आखिर क्या मतलब है इस कथन का? कहते हैं कि कोड़ा खदानोंका पट्टा देने के एवज में 150-200 करोड़ वसूलते थे। चूंकि कोड़ा दो हजारकरोड़ रुपये की संपत्ति इकट्ठा करने में सफल रहे इसलिए यह स्वत: सिद्ध होजाता है कि देशी-विदेशी कंपनियों ने उन्हें खुशी-खुशी भारी भरकम रिश्वत दी।इसका एक अर्थ यह भी है कि उन्हें खदानों के पट्टे कौडि़यों के मोल मिल गए? येवे स्थितियां हैं जिनमें नक्सलियों को अपने समर्थक जुटाने के लिए जहमत उठानेकी जरूरत ही नहीं। नि:संदेह हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकती, जो किनक्सलियों की रणनीति का प्रमुख अंग बन गई है, लेकिन क्या सत्ता के शिखरों परबैठे लोगों के पास इसका कोई जवाब है कि देश में कुछ लोग रातों-रात करोड़ोंरुपये क्यों बटोर ले रहे हैं? ऐसा करने वालों में कोड़ा एवं राजा तो उदाहरणभर हैं, क्योंकि न जाने कितने लोग ऐसे हैं जो अनुचित-अनैतिक तरीके सेतिजोरियां भर रहे हैं और हमें-आपको पता नहीं।
साभार:-दैनिक जागरण

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