Friday, March 13, 2009

आज के सवाल
बहुत समय के बाद आज कुछ लिखने के लिए बैठा हूँ. मन में बहुत सारे सवाल पैदा हो रहे हैं आज के ताज़ा हालत पर।आप सब से भी मैं ये विनती करूंगा कि इस विषय को गम्भीरता से लें और ज्यादा से ज्यादा लोगों के बीच इसकी चर्चा करें।REPUBLIC OF INDIA (भारतीय गणतन्त्र ) के संविधान के अनुसार हर भारतीय के लिए कुछ मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है। समानता,स्वतंत्रता,शोषण का विरोध, धार्मिक आजादी,शिक्षा, संस्कृति , संवैधानिक , जीने और व्यक्तिगत आजादी का अधिकार इनमें मुख्य हैं। हम लोग जिसे आजादी का नाम देकर जश्न मानते हैं , क्या बदलाव महसूस करते हो गुलामी और आज की आजादी में। मेरे विचार से कुछ भी तो नहीं बदला है आज में और 62 साल पहले के भारत में ( भारतीयों के मौलिक अधिकारो के संदर्भ में ) . आम नागरिक के साथ आज भी वही भेदभाव , शोषण हो रहा है , पहले अंग्रेज करते थे अब उनकी विरासत के वारिस काले अंग्रेज करते हैं. धार्मिक आजादी के नाम पर किसी धर्म विशेष का प्रयोग वोट के लिए किया जाता है और किसी को सांप्रदायिकता करार दिया जाता है. धार्मिक उन्माद फैलाकर आपसी भाईचारे को खत्म किया जाता है. आम नागरिक को सरकारी स्तर पर शिक्षा मुहैया कराने की बात कहाँ तक खरी उतरती है . हर शहर और कस्बे में निजी स्कूलों और कालेजों की दुकानदारी खुलेआम चल रही है. एक बहुत बड़ा माफियाओं का समूह शिक्षा के नाम पर तथाकथित देश के नेताओं से सांठगांठ करके अपनी तिजोरियाँ भरने में लगे हुए हैं . संस्कृति की तो बात करना ही दकियानूसी और किसी पिछड़ेपन की पहचान लगने लगी है. आजकल का युवा और तथाकथित 21वी सदी के पक्षधर संस्कृति की बात करने वालों को किसी दूसरे ग्रह का प्राणी समझते हैं. कहने के लिए हर भारतीय को संवैधानिक अधिकार मिले हुए हैं. कानून की देवी की आँखों पर पट्टी बांधकर यह संदेश देने का झूठा प्रचार किया जाता है कि संविधान की नजर में सभी नागरिक समान हैं , जबकि सत्य इसके बिल्कुल विपरीत है . ' समरथ को नहीं दोष गुसाईं ' यह बात रामचरितमानस् में गोस्वामी तुलसीदास जी बहुत समय पहले ही वर्णित कर चुके हैं. जब भी कोई घोटाला या षड्यंत्र का भंडाफोड़ होता है तो हरेक शासन करने वाली पार्टी के मंत्री का एक ही बयान होता है ' किसी भी व्यक्ति को बख्शा नहीं जाएगा चाहे वो कितने ही बड़े पद पर क्यों न हो.' C.B.I. जैसी देश की उच्चतम केंद्रीय संस्था का आज तक का इतिहास इस बात का गवाह है ,उपरोक्त बयान कहाँ तक सही है ? देश के आम नागरिक को न्याय पाने के लिए न्यायलयों के चक्कर काटते-काटते अपना पूरा जीवन बीत जाने के बाद भी न्याय नहीं मिलता . हर भारतीय के जीवन की रक्षा और स्वास्थ्य के लिए शायद किसी दूसरे देश या लोक की ज़िम्मेवारी है . भारतीय नेता तो यही सोचकर बैठे हैं . चाहे आम नागरिक की सुरक्षा का मामला हो या उसकी बीमारियों के लिए उपचार के लिए आधारभूत साधनों का . शासन करने वाले अपनी सुरक्षा के लिए करोड़ों रूपये खर्च कर देतें हैं,परन्तु आम जनता मरती रहे इनको कोई फर्क नहीं पड़ता . या फिर उच्च और हाई प्रोफ़ाइल लोगों पर हमला होता है तो सरकार तुरन्त हरकत में आ जाती है .मुम्बई ताज होटल का हमला इसका उदाहरण है अगर ये हमला किसी आम जगह पर होता तो शायद इतना शोरशराबा नहीं होता . लोग अपने स्वास्थ्य के लिए भी निजी और बड़े-बड़े कार्पोरेट सेक्टर के अस्पतालों पर निर्भर हैं. सभी को इस बात का पता है कि इन अस्पतालों में चिकित्सा के नाम पर कितनी बेदर्दी से लोगों का आर्थिक शोषण किया जाता है . इस क्षेत्र में भी बहुत बड़े-बड़े लोग सरकारों के साथ मिलकर सरेआम कानून का मखौल उड़ाते हुए आम लोगों के शरीर और भावनाओं तथा संवेदनाओं को मारने के पाप में संलिप्त हैं . जहाँ तक हर व्यक्ति के जीने के लिए आधारभूत सुविधाओं की बात है ( बिजली ,पानी, स्वच्छ हवा , सड़क , परिवहन ,आवास ,भोजन ) तो आप देश के किसी भी कोने में चले जाइए हर जगह उपरोक्त सुविधाओं के लिए शासन के खिलाफ लोगों में एक आक्रोश मिलेगा . सरकार ने योजना आयोग बनाकर अपनी ज़िम्मेदारी को निभाने का नाटक रचा रखा है . क्या इनको कोई अनुमान नहीं होता कि आने वाले 20 साल बाद किसी शहर या कस्बे में कितनी बिजली,पानी,सड़क,आवास की आवश्यकता होगी . अगले साल 2010 में देश की राजधानी में कॉमनवेल्थ गेम होंगे . उसके लिए फटाफट योजनाएँ बनकर कम चालू हो जाता है (नये होटलों का निर्माण , बिजलीघरों का निर्माण ,खेल स्टेडियम ) कोई इनसे पूछे इस काम के लिए इनके पास इच्छाशक्ति और धन कहाँ से आ जाता है ? अगर ये गेम ना होते तो ये लोग धन का रोना रोकर या और कोई बहाना बनाकर टाल जाते . बहुत से शहरों में दूषित जल की आपूर्ति की शिकायतें मिलती रहती हैं . मिलावटी खाद्य वस्तुएं बेचने पर दुकानदारों को दोषी मानकर उनपर कानूनी कार्यवाही की जाती है .उपभोक्ताओं को दैनिक उपयोग की सामग्री सही दुकानदार से खरीदने का विकल्प भी होता है.लेकिन स्थानीय दूषित जलापूर्ति का नागरिकों के लिए कोई विकल्प नहीं होता और दूषित जलापूर्ति के लिए न ही किसी अधिकारी या मंत्री पर कानूनी कार्यवाही होती है . देश के कई हिस्सों में लोग भूख से मर रहे हैं और कई जगह अनाज सरकारी गोदामों में सड़ रहा है.देश की किसी भाग में सूखे के कारण अकाल होता है तो किसी कोने में अतिवृष्टि से बाढ़ का प्रकोप होता है .जब किसी दूसरे देश से तेल की पाईपलाइन लाई जा सकती है तो क्या एक ही देश के सूखे क्षेत्र में बाढ़ पीड़ित क्षेत्र का पानी नहीं लाया जा सकता . दोनों क्षेत्रों में जो जानमाल और राष्ट्रीय सम्पति का नुकसान होता है उसका उपयोग अन्य बहुत सी योजनाओं को पूरा करने के लिए किया जा सकता है. आवास के अभाव में ठंड और गर्मी से बहुत से लोग मरते हैं , लाखों की संख्या में मन्दिर और धर्मशालाएँ बनी हुई और अब भी बहुत से तीर्थस्थानों पर बनती ही जा रही हैं . लेकिन इस देश की विडम्बना देखिए धनाड्य और संपन्न वर्ग भी इन भ्रष्ट राजनैतिक पार्टियों को चन्दा देने में नहीं हिचकते ,लेकिन इन सड़क पर जीवन बसर करने वाले असहाय गरीबों को सहारा देने में शर्म आती है . ऐसा नहीं है कि उपरोक्त सभी समस्याओं का राजनैतिक पार्टियों के पास कोई समाधान ना हो. सभी पार्टियाँ जानबूझ कर इन्हें बनाए रखती हैं ताकि इनके नाम पर अपना वोट का खेल जारी रख सकें .अगर इन सबका हल हो जाए तो फिर ये किस बात पर जनता को गुमराह करेंगी . जिस प्रकार से अंग्रेजों की नीति थी 'फुट डालो और राज करो ' उसी नीति पर आज की राजनैतिक पार्टियाँ कम कर रही हैं. इन्होने अपनी राजनैतिक आकांक्षा पूरी करने के लिए समाज को हद से ज्यादा तोड़ने का काम किया है. हरेक राजनैतिक पार्टी में भ्रष्ट और अपराधिक पृष्ठभूमि की छवि के लोगों की भरमार है. हर पार्टी का नैतिक और चारित्रिक पतन हो चुका है. ऐसे में इन लोगों से कोई भी उम्मीद करना निरर्थक है . आज समय की जरूरत है कि देश कि जनता में जागरूकता लाई जाए और सही मायने में आजादी को परिभाषित किया जाए.

6 comments:

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

हा-हा-हा-हा-हा-हा.....आप भी क्या खूब पूछते हैं जनाब....इसके लिए धन कहाँ से आता है....उसके लिए धन कहाँ से आता है.....अरे मेरे प्यारे ऐ भाई....आपसे किसने कहा कि इस देश में धन की कमी है....??अरे मेरे भाई....इस देश के तारनहारो में बस शर्म की कमी है.......!!

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

aisa hee dard idhar bhee hai, narayan narayan

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

आप सही चिन्ता कर रहे हैं...। सवाल इस दुष्चक्र से बाहर निकलने के रास्ते बनाने का है।

ज्योत्स्ना पाण्डेय said...

ब्लॉग की दुनिया में आपका स्वागत है ,मेरी शुभकामनाएं आपके लेखन के लिए ......

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

Deepak "बेदिल" said...

ha ha kya baat hujur ha ha ..welcome blog to blog ki duniya